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चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा (१)
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ही सात व्यसन भी छुड़ाए जाते। इन्हें छोड़ने वाला व्यक्ति है जैन । यह जैन धर्म की एक पहचान बन गई । इसके कारण जैन लोगों ने बहुत विकास किया है । आज हिन्दुस्तान में संख्या की दृष्टि से बहुत कम होते हुए भी जैन समाज अग्रणी बना हुआ है । शिक्षा, संपन्नता और कार्य कौशल - इन सब में अपनी एक विशिष्टता बनाए हुए है।
सचाई की स्वीकृति
आचार्य श्री के पास कुछ राजपूत लोग आए। उन्होंने कहा महाराज! ओसवाल समाज बहुत आगे बढ़ गया । व्यापार-व्यवसाय में पुरुषार्थ नियोजित कर उसने बहुत कुछ प्राप्त किया है । हम शराब और मांस में रच-पच गए इसलिए हम आज भी वहीं हैं, जहां पहले थे। हमने शराब और मांस के व्यसन के कारण बहुत कुछ खोया भी है। इस कथन में एक सचाई की स्वीकृति है किन्तु आज इसका जैन धर्म में भी कहीं कहीं लोप हो रहा है । जब दिमाग शराब से बहुत आक्रांत हो जाता है तब व्यावसायिक मंदता भी आ जाती है, कुंठा और तनाव भी आ जाता है। जब जब विवाह - शादी का प्रसंग आता है तब तब शराब का रंग सा चढ़ जाता है। बड़े-बड़े प्रतिष्ठित परिवारों में खुलकर शराब की बोतलों का प्रयोग होता है । कोई संकोच नहीं, कोई शर्म और लाज नहीं । जब-जब ऐसी घटनाएं सुनते हैं तब-तब ऐसा लगता है - जैन धर्म अपनी पहचान खोता जा रहा है ।
बदल रहा है आंतरिक चरित्र
यह सारा क्यों होता है? जिस चीज से समाज बचा हुआ है, आज वह उसी ओर क्यों जा रहा है? हमें यह मान लेना चाहिए- आंतरिक चरित्र अब बदलने की तैयारी कर रहा है । मादकता की वृत्ति भीतर से उभरती है और वह बाहर आकर अपनी पूर्ति के स्थान ढूंढ लेती है। प्रत्येक वृत्ति के अपने अपने अड्डे बनाए हुए हैं। क्रोध का भी अपना अड्डा है। माया और लोभ के भी अपने अड्डे हैं । चैतन्य केन्द्र क्या है ? ये सब अड्डे हैं । जैसे बसों के
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