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अपना दर्पणः अपना बिम्ब एक प्रयोग है-जीभ को दांतों की जड़ में दबाएं । जीभ जितनी स्थिर होगी मन उतना ही एकाग्र बनेगा। जीभ जितनी चंचल होगी आदमी उतना ही चंचल होगा, वृत्तियां उतनी ही चंचल होंगी । जीभ को तालु के लगा लें, मन शान्त
और एकाग्र बन जाएगा। अमृत नाव : महत्त्वपूर्ण प्रयोग
हठयोग का एक महत्त्वपूर्ण शब्द है-अमृत-स्राव । अमृत का स्राव हो तो मन बिलकुल शान्त बन जाएगा। उसका एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है-जिव्हासंयम। इस स्थिति का अभ्यास न हो तो दमन करने की बात आएगी, असंयम की बात आएगी । इन दोनों स्थितियों से बचने का मार्ग है जीभ का संयम । नियंत्रण से उत्पन्न संयम नहीं, सहज उत्पन्न संयम।
मस्तिष्क की अपनी एक लयबद्ध क्रिया चलती है । जब जब काम, क्रोध, लोभ के आवेश जागते हैं, उसमें एक विघ्न पैदा करते हैं। विकार पैदा होता है और लय टूट जाती है । वह आदमी अपने जीवन में ज्यादा सफल होता है, जो इन विघ्नों को पैदा नहीं होने देता । यह स्थिति तब संभव है जब वृत्ति का उदात्तीकरण हो जाए। क्या आइंस्टीन को इतना बड़ा बनने का अवसर वासना ने दिया? यदि आइंस्टीन इस चक्र में फंस जाते तो कभी इतने बड़े न बन पाते । एक प्रयोग और खोज में लगने के बाद उनका ध्यान किसी दूसरी दिशा में नहीं जाता। जिस खोज में लग जाते, उसमें पूरी तन्मयता से लगे रहते। इतनी तन्मयता होती है तभी कोई बड़ा काम संभव बन पाता है। निदर्शन वाचस्पति मिश्र का
न्यायशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है-भामती । ग्रंथ के रचयिता हैं वाचस्पति मिश्र । उन्होंने शादी कर ली किन्तु उनकी सारी शक्ति ग्रंथ के निर्माण में लगी हुई थी । अनेक वर्ष बीत गए । उन्हें यह पता ही नहीं था कि मैंने शादी की है । पत्नी का नाम था भामती । वह निरंतर सेवा में रत रहती । दोनों वक्त भोजन का थाल रख जाती । संध्या बीतते ही दीपक जला
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