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अपना दर्पणः अपना बिम्ब क्यों न हो, खेचरी मुद्रा करते ही चंचलता कम हो जाएगी । यह अनुभव सिद्ध प्रयोग है । जीभ के ऐसे अनेक रहस्य हैं, जिन्हें हम जान ही नहीं पा रहे हैं। केवल खाने का संयम ही जीभ का संयम नहीं है । खाना और बोलना जीभ के साथ जुड़ा हुआ है, यह सब जानते हैं किन्तु उसके अन्य जो संदर्भ हैं, उन्हें हम नहीं जानते । जिव्हा-संयम का एक अर्थ है-खाद्य संयम । उसका दूसरा अर्थ है-वाक् संयम । तीसरा अर्थ है-चंचलता पर नियंत्रण और उसका चौथा अर्थ है-कामवासना पर नियंत्रण। हम इन सब अर्थों को जानें। अर्थ को जाने बिना कोरी क्रिया काम नहीं देती। अर्थवान् हो क्रिया
पुराने जमाने की बात है। एक आदमी सब दिशाओं में प्रणाम कर रहा था। साधना की मुद्रा रही है प्रणामी मुद्रा । उसने छहों दिशाओं को प्रणाम किया। एक तत्त्वज्ञ साधक ने उससे पूछा-यह क्या कर रहे हो?
मैं सब दिशाओं को नमस्कार कर रहा हूं। क्यों कर रहे हो ? यह हमारे धर्म का विधान है । किसलिए करते हो? यह तो मुझे पता नहीं है ।
साधक ने बात को आगे बढ़ाया - तुम अपने नौकरों के साथ कैसा व्यवहार करते हो? कुछ लोग अपने नौकरों के साथ बहुत क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते हैं। तुम उनके साथ क्रूर व्यवहार तो नहीं करते ?
कभी अच्छा व्यवहार करता हूं और कभी क्रूर व्यवहार भी कर लेता
अपने गुरुजनों का सम्मान करते हो ? कभी करता हूं और कभी नहीं करता ।
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