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चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा-(२)
मित्रों के साथ लड़ाई करते हो ? कभी कभी लड़ाई भी कर लेता हूं।
साधक ने कहा - कोरा दिशाओं को नमस्कार करने से क्या होगा? दिशाओं को नमस्कार करने का रहस्य क्या है? पहले इसे जानो।
क्या आप उस रहस्य को जानते हैं?
हां।
क्या आप कृपाकर मुझे इसका रहस्य बताएंगे ?
साधक ने कहा – पूर्व दिशा को नमस्कार करने का अर्थ है-अपने पूर्वजों का सम्मान करना। पश्चिम दिशा को नमस्कार करने का अर्थ है-अपने अनुगामियों का सम्मान करना । दक्षिण दिशा को नमस्कार करने का अर्थ है-अपने गुरु के आदेशों का पालन करना । गुरु को दक्षिण बनाना, अपने अनुकूल बनाना। उत्तर दिशा को नमस्कार करने का अर्थ है-अपने मित्रों के साथ सद्व्यवहार करना । ऊंची दिशा को नमस्कार करने का अर्थ है-अपने धर्म गुरुओं, आचार्यों का सम्मान करना । नीची दिशा को नमस्कार करने का अर्थ है-नौकर-चाकरों का सम्मान करना ।
साधक से समाधान पा व्यक्ति कृतज्ञता से भर गया । जिव्हा से जुड़े प्रयोग
यदि यह बात समझ में आ जाए तो जीवन की सारी कला समझ में आ जाए। हम नियम या विधान को जानते हैं पर उसके पीछे जो भावना है, उसे नहीं जानते। जीभ के नियम हमें ज्ञात हैं पर उनके पीछे भावना क्या है, यह जानना भी अपेक्षित है । प्रेक्षा ध्यान शिविर में एक प्रयोग कराया जाता है जीभ को स्थिर रखने का। निर्देश दिया जाता है-जीभ को अधर में रखें, दाएं बाएं कहीं स्पर्श न हो । जीभ अधर और स्थिर रहे । जीभ के अग्रभाग पर ध्यान केन्द्रित करें। मन की एकाग्रता के लिए यह बहुत अच्छा प्रयोग है।
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