________________
जैन साहित्य में अतीन्द्रिय चेतना के स्रोत महत्त्वपूर्ण प्रश्न
गोरक्ष पद्धति में ध्यान के नौ स्थान बतलाए गए हैं:१. आधार-चक्र
६. घण्टिाकामूल २. स्वाधिष्ठान
७. लम्बिका स्थान ३. मणिपूर
८. आज्ञाचक्र ४. हृत्पद्म (अनाहत) ६. शून्य स्थान ५. विशुद्धि
प्रश्न होता है कि तंत्रशास्त्र और हठयोग में चक्रों का निरूपण है किन्तु जैन साहित्य में उनका कोई निरूपण नहीं है । जैन परम्परा में ध्यान की पद्धति का विलोप हो जाने के कारण इस प्रश्न का उत्तर खोजा भी नहीं गया। हरिभद्र सूरि, शुभचन्द्र, हेमचन्द्र आदि आचार्यों ने अपने योग-ग्रंथों में हठयोग का समावेश किया, किन्तु जैन साहित्य में उपलब्ध चक्रों की ओर ध्यान नहीं दिया। अतीन्द्रिय ज्ञान की खोज और उसकी उपलब्धि में जैन साधक आगे नहीं बढ़ सके । वास्तविकता है कि शरीर के बारे में सही जानकारी नहीं रही और उसका सही मूल्यांकन नहीं किया गया। हम केवल आत्मा शब्द पर अटक गए।
गोरक्ष पद्धति २/७५-७६ः गुदं मेद्रं च नाभिश्च, हृत्पमं च तदूर्ध्वतः। घण्टिका लम्बिकास्थानं, भ्रूमध्ये च नभोविलम्। कथितानि नवैतानि, ध्यान-स्थानानि योगिभिः । उपाधितत्वमुक्तानि, कुर्वन्त्यष्टगुणोदयम्।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org