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कायोत्सर्ग
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होता है तब उतनी निर्जरा नहीं होती, जितनी कायोत्सर्ग या शिथिलीकरण की अवस्था में होती है । कायोत्सर्ग की अवस्था में सारे पुराकृत कर्म प्रपित हो जाते हैं । कायोत्सर्ग कब करें ?
एक प्रश्न है - कायोत्सर्ग कब करना चाहिए ? एक मुनि के लिए विधान किया गया - प्रयोजनवश प्रवास-स्थान से बाहर जाए तो लौटते ही कायोत्सर्ग करे । सोने से पहले कायोत्सर्ग करे । नींद में सपना आ जाए तो कायोत्सर्ग करे। यदि कोई विशेष स्वप्न आए तो चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करे । नदी पार करना हो तो कायोत्सर्ग करे । स्वाध्याय की प्रस्थापना करे तो आठ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करे । मुनि की प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ कायोत्सर्ग का विधान उपलब्ध होता है । उपद्रव, उपसर्ग और शारीरिक व्याधि की स्थिति में लंबे कायोत्सर्ग का विधान है । कायोत्सर्ग कैसे करें?
एक प्रश्न है - कायोत्सर्ग कैसे करें ? प्राचीन काल में कायोत्सर्ग करने की जो विधि रही है, उसमें शरीर का शिथिलीकरण, ममत्व का त्याग, इसके साथ-साथ पद और श्वास का आलंबन यह पूरी प्रक्रिया प्रचलित रही है । श्वासोच्छ्वास के साथ कायोत्सर्ग करने से अधिक एकाग्रता और शिथिलता आ जाती है । कायोत्सर्ग में एकाग्रता बहुत जरूरी है । हालांकि कायोत्सर्ग स्वयं एकाग्रता लाने वाला प्रयोग है । श्वास के साथ वह अधिक शक्तिशाली बन जाता है । कायोत्सर्ग-यह सूचक शब्द है काया के उत्सर्ग का । जब काया का त्याग होता है तब बाहरी भान कम होने लग जाता है । उसी अवस्था में अनुप्रेक्षा करने या सजेशन देने का अच्छा अवसर होता है । जब तक चेतन मन काम करता है, स्थूल चेतना काम करती है तब तक अनुप्रेक्षा या सजेशन पूर्णतः कारगर नहीं होते । जब आदमी भीतर में चला जाता है तब एक नई घटना घटित हो जाती है ।
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