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दीर्घश्वास प्रेक्षा शरीरशास्त्र की भाषा
शरीरशास्त्र की भाषा भी यही है-जिस क्रिया को हम प्रयत्नपूर्वक करते हैं, वह इच्छाचालित क्रिया है । जो क्रिया अपने आप चल रही है, वह स्वतःचालित क्रिया है । हमारे शरीर में दोनों प्रकार की क्रियाएं चल रही हैं। श्वास तीसरे प्रकार की क्रिया है । श्वास में इन दोनों का मिश्रण है।
आगम में तीन शब्द प्रयुक्त हुए हैं - वैनसिकी - वह क्रिया , जो स्वभाव से चल रही है । प्रायोगिकी – वह क्रिया, जो प्रयत्नपूर्वक की जाती है ।
मिश्रित- वह क्रिया, जो स्वभाव से भी चल रही है और जिसे प्रयत्नपूर्वक भी किया जाता है । श्वास : स्वतःचालित भी, इच्छाचालित भी
श्वास एक ऐसी क्रिया है, जो स्वतःचालित भी है और इच्छाचालित भी है। श्वास पर हमारा चेतनात्मक नियंत्रण भी है और वह अपने आप भी चलता ही रहता है । जब सोते हैं तब भी श्वास चलता रहता है । जब जागते हैं तब भी श्वास चलता रहता है । जब तक व्यक्ति जीता है, श्वास चलता रहता है । यह हमारी इच्छा पर निर्भर है कि हम जब चाहे श्वास लें और जब चाहे, उसे रोक लें । जब चाहे श्वास को लम्बा कर लें या छोटा कर लें। हम श्वास का संयम और कुंभक भी कर सकते हैं । हमारी क्रियाएं तीन प्रकार की हो गईं - स्वतःचालित क्रिया, प्रयत्नचालित क्रिया और उभयात्मक क्रिया । श्वास तीसरी कोटि की क्रिया है। इसमें स्वतःचालित अंश भी है और इच्छाचालित अंश भी है। अंतर्यात्रा : वाहन
प्रश्न है - हम अन्तर्यात्रा कैसे करें ? बाहर से भीतर जाने की यात्रा लंबी यात्रा है । आदमी इसे कैसे तय कर पाएगा? यात्रा के लिए कोई वाहन
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