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समवृत्ति श्वास प्रेक्षा चार बजे के बीच का जो समय है, उसमें मंत्रणा नहीं होनी चाहिए। परिवर्तन के सूत्रों को जानें
___ यह ऋतु का चक्र बराबर चलता है । तीन ऋतुएं दिन में होती हैं और तीन ऋतुएं रात में । हम कितने चक्रों के बीच चल रहे हैं । स्वर-चक्र, ऋतुचक्र
और मस्तिष्कीय पटलों का चक्र । ये चक्र प्रकृति से उपलब्ध हैं। हम इन्हें जान लें तो परिवर्तन के सूत्र हाथ लग जाते हैं । यदि हम इन्हें नहीं जान पाते हैं तो कुछ ऐसी बातें आ जाती हैं, जो वांछनीय नहीं होती ।
एक ब्राह्मण पैदल यात्रा कर रहा था। चलते-चलते जंगल आ गया। ब्राह्मण ने सोचा-यहां खुला स्थान है । भोजन बनाकर खाना खा लेना चाहिए।
आटा-दाल उसके पास थे । उसने इधर-उधर से पत्थर इकट्ठे किए । गीली मिट्टी का चौका बनाया । वह सारी तैयारी कर लकड़ियां बीनने चला गया। उसी समय एक गधा आया और वह उस चौके में बैठ गया । ब्राह्मण ने देखा-चौके में कोई बैठा हैं । इतने श्रम से बनाया चौका खराब हो गया है। समस्या हो गई रसोई बनाने की । रसोई कहां बनाए ? वह निराश स्वर में बोल उठा-दूसरा कोई होता तो उसे कहता - गधे हो, कुछ देखते नहीं । जब आप स्वयं आकर विराज गए हैं तो आपको क्या कहूं । आपके लिए कोई शब्द ही नहीं रहे । अनुपमेय हैं आप । मैं आपको क्या उपमा दूं?
ऐसा जीवन में भी होता है । हम कोई चौका बनाते हैं और ऐसी घटना घट जाती है, जो समस्या पैदा कर देती है । जरूरी है ऐसी व्यवस्था करना, जिससे चौके की तरफ गधा आए ही नहीं । ऐसे परिवर्तन के नियमों को
खोजना अपेक्षित है, जो समस्या को आने ही न दें । रहस्यपूर्ण प्रयोग
स्वर-चक्र का हमारे स्वभाव के साथ गहरा संबंध है । लौकिक और अलौकिक विद्याओं के साथ उसका गहरा संबंध है । हमारी मनोदशा के साथ भी उसका संबंध है । हमारे भाग्य के साथ भी उसका संबंध जुड़ा हुआ है |
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