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केवल ज्ञान : इसी क्षण में
अनेक बार प्रश्न आता है - यह पांचवां आरा है, दुःषमकाल है । क्या आज भी केवल ज्ञान हो सकता है ? केवल दर्शन हो सकता है? क्यों नहीं हो सकता ? यदि अभ्यास करें तो आज भी केवल ज्ञान और केवल दर्शन हो सकता है । इसी क्षण हो सकता है यदि मोह को बीच में न आने दें । केवल जानें, केवल देखें । ज्ञाता - द्रष्टा बनें । वस्तु केवल ज्ञेय बने । ज्ञाता और ज्ञेय के बीच हेय को न आने दें । केवल ज्ञाता और ज्ञेय का संबंध रहे ।
अपना दर्पणः अपना बिम्ब
केवल ज्ञान शुद्ध ज्ञान है । गंगा का निर्मल पानी बह रहा है। उसमें फैक्ट्रियों का गंदा पानी न मिलने दें । फैक्ट्रियों का गंदा पानी गंगा में नहीं मिलेगा तो गंगा का शुद्ध पानी केवल पानी रहेगा । आज केवल पानी कहां है? उसमें कितना मिश्रण है । बड़े शहरों में सीवरेज व्यवस्था होती है । जल और मल- दोनों के नल साथ साथ चलते हैं। कहीं भी टूट फूट होती है, जल और मल का मिश्रण हो जाता है। वही पानी घरों में पहुंचता है । बीमारियां फैल जाती हैं । उद्घोषणाएं होती हैं- पानी को गर्म करके पीएं। अन्यथा बीमारी फैल जाएगी । हमारा ज्ञान भी शुद्ध ज्ञान नहीं रहा । इसमें मोहनीय कर्म का नाला मिल गया। यदि हम मोहनीय कर्म के नाले को न मिलने दें, हमारा ज्ञान कोरा ज्ञान बना रहे तो इसी क्षण केवल ज्ञान और केवल दर्शन हो सकता है। हम सावधान रहें, ज्ञान में मोह की फैक्टरी का कचरा न मिलने दें। मोहनीय कर्म की जो रासायनिक गंदगी आती है, इससे अपने आपको बचाते रहें ।
निदर्शन मिश्रण का
बालोतरा और जसोल ग्राम के बीच लूनी नदी बहती है । बरसात के दिनों में जब यह नदी बहती है तो आस-पास के कुए पानी से भर जाते हैं। एक समय था- इस नदी के आस-पास बने हुए कुओं का पानी बहुत बढ़िया था, स्वास्थ्यकर था किन्तु जब से नदी के दोनों ओर फैक्टरियों का जाल बिछना शुरू हुआ है, नदी का पानी शुद्ध नहीं रहा। फैक्टरियों का रासायनिक
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