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चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा (७)
शिष्य की जिज्ञासा
___ शिष्य के मन में एक जिज्ञासा उभरी । वह समाधान पाने के लिए गुरु की सन्निधि में उपस्थित हुआ । गुरु को नमस्कार कर निवेदन किया-गुरुदेव । मन में एक जिज्ञासा है -
कुतश्चरित्रमायाति, विचारादथवा मतेः । चरित्रस्रोतसो ज्ञानं, कर्तुमिच्छामि संप्रति ।।
चरित्र कहां से आता है ? वह विचार से पैदा होता है या बुद्धि से? चरित्र का स्रोत क्या है?
गुरु ने पूछा – वत्स ! तुम्हारे मन में यह प्रश्न क्यों आया ? क्या कोई उलझन है ?
शिष्य ने कहा - गुरुदेव ! एक समस्या ने मेरे मन में यह प्रश्न पैदा किया। मैंने एक व्यक्ति से कहा - तुम शराब पीना छोड़ दो । शराब पीना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है । मन एवं भावों की स्वस्थता के लिए भी अच्छा नहीं है और जीवन के लिए भी अच्छा नहीं है।
विचार के स्तर पर वह व्यक्ति मेरी बात से सहमत हो गया। उसने कहा-महाराज ! आप ठीक कहते हैं । शराब से लीवर खराब होता है, फेफड़े खराब होते हैं। उसका हार्ट पर भी बुरा असर पड़ता है।
मैंने दूसरे दिन उससे पूछा - कल शराब का सेवन किया ? उसने कहा - हां! थोड़ी-सी शराब पीनी पड़ी ।
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