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शरीर प्रेक्षा
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कुछ ही देर में गहराई में चली गई । उसके हाथ की क्रियाएं ऐसे शुरू हो गई, जैस यंत्र चल रहा हो । उसका तैजस शरीर सक्रिय हो गया। स्वयं आसन, स्वयं मुद्रा और स्वयं संचालन - बाहर का कुछ पता ही नहीं चला। सूक्ष्म शरीर के प्रकंपन भी निरन्तर हो रहे हैं । इन सबको देखने का अर्थ है- शरीर को देखना |
अपनी भाग्यलिपि पढ़ें
हम अपने शरीर के भीतर देखें । शरीर के भीतर जो है, उसे पढ़ें। उसमें हम अपनी भाग्यलिपि को पढ़ सकते हैं।
प्राचीन समय की बात है । सेठ के पास एक व्यक्ति चिट्ठी लेकर आया । सेठ ने उसे अपने मकान के एक हिस्से में ठहराया। उसे रोटी बनाने के लिए आटा दे दिया, दाल और मसाला दे दिया । उस व्यक्ति ने सेठ से कहा - सेठजी ! मुझे घी दो, चीनी दो, यह दो, वह दो
सेठ बोला - भले आदमी ! लड़ते क्यों हो ? जो देना था, दे दिया ।
उसने कहा - मेरे सेठ ने कहा था कि तुम्हारी बहुत आवभगत होगी । घृत - मिष्ठान्न का भोजन मिलेगा। तुम कृपण हो इसलिए कुछ भी नहीं दे रहे
हो ।
सेठ ने उसे चिट्ठी पकड़ाते हुए कहा- देखो, इसमें क्या लिखा है ? तुम्हारे सेठ ने लिखा है -- केवल आटा दे देना
कोरी चिट्ठी चूण की, क्यूं मांगे घी दाल ।
म्हांस्यूं लड़ियां के हुवे, लिखिया सांमो भाल ।।
हमारे भीतर बहुत आकांक्षाएं जगती हैं - यह हो जाए, वह हो जाए, यह करूं वह करूं किन्तु हम यह भी देखें - हमारी क्षमता कितनी है, हमारा पुरुषार्थ कितना है । यह देखना अपने भाग्य को बदलने की कला है, अपने विकास और सफलता की कला है । हम सम्मोहन के मायाजाल से हटकर देखना सीख जाएं तो सफलता निश्चित है ।
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