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________________ शरीर प्रेक्षा १०५ कुछ ही देर में गहराई में चली गई । उसके हाथ की क्रियाएं ऐसे शुरू हो गई, जैस यंत्र चल रहा हो । उसका तैजस शरीर सक्रिय हो गया। स्वयं आसन, स्वयं मुद्रा और स्वयं संचालन - बाहर का कुछ पता ही नहीं चला। सूक्ष्म शरीर के प्रकंपन भी निरन्तर हो रहे हैं । इन सबको देखने का अर्थ है- शरीर को देखना | अपनी भाग्यलिपि पढ़ें हम अपने शरीर के भीतर देखें । शरीर के भीतर जो है, उसे पढ़ें। उसमें हम अपनी भाग्यलिपि को पढ़ सकते हैं। प्राचीन समय की बात है । सेठ के पास एक व्यक्ति चिट्ठी लेकर आया । सेठ ने उसे अपने मकान के एक हिस्से में ठहराया। उसे रोटी बनाने के लिए आटा दे दिया, दाल और मसाला दे दिया । उस व्यक्ति ने सेठ से कहा - सेठजी ! मुझे घी दो, चीनी दो, यह दो, वह दो सेठ बोला - भले आदमी ! लड़ते क्यों हो ? जो देना था, दे दिया । उसने कहा - मेरे सेठ ने कहा था कि तुम्हारी बहुत आवभगत होगी । घृत - मिष्ठान्न का भोजन मिलेगा। तुम कृपण हो इसलिए कुछ भी नहीं दे रहे हो । सेठ ने उसे चिट्ठी पकड़ाते हुए कहा- देखो, इसमें क्या लिखा है ? तुम्हारे सेठ ने लिखा है -- केवल आटा दे देना कोरी चिट्ठी चूण की, क्यूं मांगे घी दाल । म्हांस्यूं लड़ियां के हुवे, लिखिया सांमो भाल ।। हमारे भीतर बहुत आकांक्षाएं जगती हैं - यह हो जाए, वह हो जाए, यह करूं वह करूं किन्तु हम यह भी देखें - हमारी क्षमता कितनी है, हमारा पुरुषार्थ कितना है । यह देखना अपने भाग्य को बदलने की कला है, अपने विकास और सफलता की कला है । हम सम्मोहन के मायाजाल से हटकर देखना सीख जाएं तो सफलता निश्चित है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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