________________
१०४
अपना दर्पणः अपना बिम्ब
चेष्टा और स्पंदन
प्रश्न होता है-हम शरीर में क्या देखें ? दो तत्त्व हमारे सामने हैं-चेष्टा और स्पंदन । हम चेष्टा को देखें, स्पंदन को देखें । आयुर्वेद की भाषा है-वातेन सर्वाः चेष्टाः -सारी चेष्टाएं वायु के द्वारा हो रही हैं। मेडिकल साइंस की भाषा है-सारी चेष्टाएं ऐच्छिक नाड़ीतंत्र के द्वारा होती है । अंगुली हिलाना, हाथ हिलाना, पैर हिलाना, बोलना ये सब ऐच्छिक नाड़ीतंत्र की क्रियाएं हैं । जो स्पंदन हैं, वे अनैच्छिक नाड़ीतंत्र की क्रियाएं हैं । पूरे शरीर में स्पंदनों का जाल बिछा हुआ है। वह स्वतः हो रहा है । चेष्टा का होना हमारी इच्छा पर निर्भर है पर स्पंदन का होना हमारी इच्छा पर निर्भर नहीं है । वह अनैच्छिक नाड़ी तंत्र का कार्य है, उसकी क्रिया है, जो सहज संचालित हो रही है । शरीर को देखें, इसका अर्थ है-अनैच्छिक नाड़ीतंत्र की क्रिया को देखें। उस क्रिया को देखें, जो हमारे अधीन नहीं है । शरीर प्रेक्षा का अर्थ
यह माना जाता है-ऐच्छिक नाड़ी तंत्र की क्रिया व्यक्ति के अधीन है। चाहे तो करें और चाहे तो न करें । अनैच्छिक नाड़ीतंत्र की क्रिया हमारे अधीन नहीं है। हृदय धड़कता है । उसका धड़कना या न धड़कना हमारे हाथ में नहीं है । भोजन करना हमारे हाथ में है लेकिन भोजन का पचना हमारे हाथ में नहीं है । बहुत सारे लोग भोजन करने के बाद तत्काल लेट जाते हैं। उन्हें यह पता ही नहीं होता कि भोजन पच रहा है या नहीं पच रहा है । तत्काल लेटना भोजन के पाचन में बाधा जरूर डालता है । सामान्यतः नियम है-भोजन करने के बाद आधा घंटा तक नींद नहीं लेनी चाहिए । हम सो सकते हैं किन्तु नींद आ गई तो भोजन के पचने में बाधा आनी शुरू हो जाएगी। भोजन का पाचन अपने आप चलता है। रक्ताभिसरण की क्रिया अपने आप हो रही है। हम नहीं जानते-रक्त शरीर में कितने चक्कर लगा रहा है। तैजस शरीर के प्रकंपन हो रहे हैं । उनमें कितनी बिजली है, इसका हमें पता नहीं है। अहमदाबाद की एक बहन ने ध्यान का प्रयोग किया। वह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org