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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
तुम स्त्री हो, माता हो ! तुम बेटे को जन्म दो तो भाग्यवान् को जन्म देना। न शूरवीर को पैदा करना, न विद्वान् को पैदा करना और न पंडित को पैदा करना । जन्म दो तो भाग्यवान को जन्म दो ।
महिलाओं ने पूछा - क्यों ?
कुंती ने कहा – देखो ! ये मेरे पुत्र सामने खड़े हैं । ये कितने शूरवीर हैं, पुरुषार्थी और पराक्रमी हैं । कितने कृतविद्य हैं । इन्होंने सारी धनुर्विद्या को ह तगत कर लिया है फिर भी जंगल में ठोकरें खा रहे हैं। इसलिए मेरी एक ही सीख है-भाग्यवान पुत्र को ही जन्म देना । ____ भाग्य है तो सब कुछ है । वह नहीं है तो विद्या और पराक्रम ठोकरें खाते हैं। समता : भाग्य
हम इस घटना को दूसरे संदर्भ में देखें । भाग्योदय के स्थान पर साम्योदय कर दें । समता को उत्पन्न करो । समता है तो सब कुछ है। वह नहीं है तो कुछ भी नहीं है । जीवन की दो धाराएं हैं-लौकिक धारा और अलौकिक धारा। अलौकिक धारा अध्यात्म की धारा है । जिस व्यक्ति ने आध्यात्मिक जीवन जीना शुरू किया है और उसके जीवन में समता नहीं आ पाई है तो मानना चाहिए-उसने जीवन में कुछ भी नहीं पाया है । पराक्रम
और विद्वत्ता का कोई मूल्य नहीं है। व्यक्ति कितना ही पराक्रमी और विद्वान् हो किन्तु यदि उसके जीवन में समता का अवतरण नहीं हुआ तो कुछ भी नहीं हुआ । लौकिक भाषा में कहा जा सकता है-व्यक्ति कितना ही पढ़ा लिखा हो, विद्वान् और पराक्रमी हो, यदि भाग्य उसका साथ नहीं देता है तो सब कुछ हो जाने पर भी वह कुछ कर नहीं पाता। संतुलन और समता
धार्मिक जीवन का सबसे बड़ा सूत्र है - समता की साधना, सामायिक की आराधना । स्वर-संतुलन के द्वारा हम इस सूत्र को खोज सकते हैं। न
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