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समवृत्ति श्वास प्रेक्षा उसके लिए बहुत उपयोगी है । हमारी जितनी सृजनात्मक और रचनात्मक प्रवृत्तियां हैं, भाषा, गणित, तर्क आदि जो शक्तियां हैं, उनका विकास करना है तो बाएं स्वर को चलाकर दाएं मस्तिष्क पटल को सक्रिय करना बहुत उपयोगी है । जो लोग बहुत कमजोर हैं, भीरु और डरपोक हैं, दीनता और निराशा की भावना से भरे रहते हैं, उनके लिए भी दाएं स्वर का प्रयोग बहुत हितकर होता है । दायां स्वर चले तो ये सारी समस्याएं मिट जाएं । साम्योदय : भाग्योदय
समस्या यह है - कब बाएं स्वर को चलाएं और कब दाएं को चलाएं? इस समस्या को समाधान देने वाली एक विधि का विकास किया गया और वह है समवृत्ति श्वास प्रेक्षा। यह अनुलोम-विलोम प्राणायाम नहीं है किन्तु ध्यान का एक प्रयोग है । हम समता की बात करते हैं, साम्य योग और सामायिक की बात करते हैं । जीवन में समता आनी चाहिए किन्तु जिसका नाड़ीतंत्र संतुलित नहीं है, स्वरचक्र संतुलित नहीं है, मस्तिष्क का दायां और बायां पटल संतुलित नहीं है, उसमें समता का विकास कितना होगा । समता के लिए इस संतुलन को बनाना जरूरी है । बहुत सारी बातें आ जाती हैं और समता नहीं आती है तो सब कुछ व्यर्थ सा हो जाता है । दूसरी भाषा में कहा जा सकता है-जिसमें समता नहीं जागती, उसका भाग्योदय ही नहीं होता, सब कुछ होने पर भी वह रिक्त बना रहता है । कुंती की सीख
कुंती पांडवों के साथ जंगल में रह रही थी । कुछ स्त्रियों को इस बात का पता चल गया । वे इकट्ठी होकर कुंती से मिलने चली आईं। महिलाओं ने कुंती से निवेदन किया-महारानी जी! आप जंगल में पधारी हैं। हमें आपके दर्शनों का कब मौका मिलता है । आप हमें कुछ सीख दें। कुंती के मन में गहरी वेदना थी फिर भी वह कुछ शांत हुई। उसने कहा
भाग्यवंतं प्रसूयेथाः, मा शूरान् माँश्च पंडितान् । शूराश्च कृतविद्याश्च, वने सीदति मत्सुताः ।।
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