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अंतर्यात्रा नरेश द्वारा जो दिया जा रहा है, वह शाक या नमक के लिए ही पर्याप्त हो सकता है । आत्मानुभूति की दिशा
हम इस भाषा में कह सकते हैं-आत्मा ही मनोरथों को पूरा कर सकती है । हम कितने ही व्यवहार में चले जाएं, जब तक आत्मा का स्पर्श नहीं होगा, हमारे मनोरथ पूरे नहीं होंगे । आत्मा का स्पर्श करना ही निश्चय नय की बात है । निश्चय इसके बिना है क्या ? कोरा व्यवहार बहुत खतरनाक होता है । जहां कोरा व्यवहार होगा वहां धर्मनीति नहीं होगी, राजनीति का शासन चलेगा, दंडनीति का शासन होगा । जो समर्थ होगा, वह दूसरों को डराएगा, धमकाएगा । जो आतंक, भय, उखाड़-पछाड़ और उठापटक चल रही है, उसका कारण है राजनीति का शासन । जहां धर्मनीति का शासन होगा वहां क्रमशः आत्मानुभूति का विकास होता चला जाएगा । आत्मानुभूति की दिशा में प्रस्थान होना ही अन्तरात्मा होना है । जरूरी है अंतर्यात्रा ___ हम इस बात पर ध्यान दें । जब तक सम्यग् दृष्टिकोण नहीं बनेगा पूरे जीवन व्यवहार के प्रति हमारा व्यवहार सम्यग नहीं होगा, तब तक बहिरात्म-भाव बना रहेगा । चाहे हम अपनी न्यूनता देखें या विशेषता किन्तु उसे दूसरों के मानदण्ड से न देखें । आत्मनिरीक्षण के द्वारा अपनी न्यूनता को देखें, विशेषता को देखें । इसके लिए हमें बाहरी भटकाव को छोड़कर भीतर आना होगा, अन्तरात्मा होना होगा । अन्तरात्मा बनने के लिए जरूरी है अंतर्यात्रा । जिस दिन इस सचाई का अनुभव होगा, हम एक नई दुनिया में प्रवेश पा लेंगे ।
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