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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
है प्राण । चाहे वह शरीर का प्राण है, मन या वाणी का प्राण । प्राण को ईंधन देने वाला, उसे चलाने वाला और उसका नियंता है श्वास श्वास लेने की कला
श्वास लेने की एक कला है सूक्ष्म श्वास । जैनाचार्यों ने एक ओर प्राणायाम का निषेध किया तो दूसरी ओर सूक्ष्म और मंद श्वास का विधान किया । श्वास को दीर्घ करने पर बल दिया । कुछ लोग कहते हैं-सहज श्वास लें । पर हमारा इसमें विश्वास नहीं है । वस्तुतः वह सहज श्वास है ही नहीं।
आदमी गलत श्वास लेता है पर कहता है-मैं सहज श्वास पर ध्यान कर रहा हूं । एक मिनट में व्यक्ति सामान्यतः पंद्रह श्वास लेता है । चार सैकण्ड में एक श्वास । बहुत सारे लोग एक मिनट में बीस-तीस श्वास ले लेते हैं । यह सहज श्वास कैसे होगा? हमें श्वास को दीर्घ करना होगा । पंद्रह श्वास की स्थिति हमें प्रकृति से मिली है । हमारी साधना है प्रयत्नजनित । हम केवल स्वाभाविक में नहीं, प्रायोगिक में विश्वास करते हैं । अभ्यास के द्वारा हमें एक मिनट में दस श्वास तक पहुंचना होगा । यदि एक मिनट में आठ-दस श्वास तक पहुंच जाएं तो अंतर्यात्रा की दिशा उद्घाटित हो जाए । हम धीरे-धीरे आगे बढ़ें, एक दिन ऐसी स्थिति आ सकती है कि एक मिनट में एक या दो श्वास लेने का अभ्यास सध जाए और ऐसा होना एक विशेष घटना होती है। दीर्घश्वास का परिणाम
दीर्घश्वास की साधना का पहला परिणाम होगा-शरीर की सम्यक् आपूर्तिद्य। इसका दूसरा परिणाम होगा-मनोबल की वृद्धि । इससे मन को शक्ति मिलेगी, धृति बढ़ेगी, हमारा नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र संतुलित काम करने लग जाएगा । आज की बहुत सारी शारीरिक और मानसिक गड़बड़ियों का कारण है-नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र का असंतुलन। जैनाचार्यों ने मंद श्वासनिःश्वास का जो सूत्र दिया है, वह बहुत सोच समझकर दिया है, मंद श्वास लो और मंद श्वास छोड़ो, अपने-आप नियंत्रण शुरू हो जाएगा। आवेगों,
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