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दीर्घश्वास प्रेक्षा
८५ भीतर में चले और उसका माध्यम श्वास बने तो अंतर्यात्रा का प्रश्न स्वतः समाहित हो जाएगा। प्रवृत्ति का साक्ष्य है श्वास
श्वास के बारे में हमारी जानकारी कम है इसीलिए अंतर्यात्रा का बोध भी कम है । अंतर्यात्रा के लिए श्वास को साथ रखना जरूरी है। शायद हमने श्वास के स्वरूप को भी समझा नहीं है । हमारी प्रवृत्ति का सबसे बड़ा साक्ष्य कोई है तो वह है श्वास । किसी भी क्रिया या प्रवृत्ति को जानना हो तो श्वास को जान लें, क्रिया समझ में आ जाएगी । श्वास को छोड़कर हम किसी दूसरे साक्ष्य को खोजेंगे तो सफल नहीं होंगे, खतरे में भी पड़ जाएंगे ।
शिकारी जंगल में शिकार के लिए गया । जैसे ही जीप से उतरा, सामने चीता आ गया । उसके पास जो बंदूक थी, वह जल्दबाजी में जीप के भीतर ही रह गई । वह मुसीबत में फंस गया । उसने सोचा-मेरे पास बंदूक तो नहीं है किन्तु लाइसेंस है । उसने अपनी जेब से लाइसेंस निकाला । लाइसेंस को दिखाते हुए वह चीते से बोला-देखो ! मेरे पास बंदूक का लाइसेंस है, तुम वहीं रुक जाओ। चीता लाइसेंस को क्या जाने? वह शिकारी पर झपटा । चीते के एक ही प्रहार ने उसे मृत्युधाम पहुंचा दिया। नियंता है श्वास
हम मूल बात को पकड़ें, लाइसेंस को नहीं । यह लाइसेंस वाली बात पर-साक्ष्य वाली बात है । स्वतः प्रमाण है हमारा श्वास । समस्या यह हैहम क्रिया को पकड़ते हैं, क्रिया के संचालक को छोड़ देते हैं। हमारी समस्त भीतरी एवं बाहरी क्रियाओं का संचालक है श्वास । बिना आक्सीजन के कभी कोई क्रिया नहीं होती । प्रत्येक कोशिका को अपना काम करने के लिए आक्सीजन चाहिए। इसकी पूर्ति कौन कर रहा है? श्वास ही तो इसकी पूर्ति कर रहा है। हमारी मन की प्रसन्नता,मन की निर्मलता, चैतसिक प्रसन्नता तब संभव है जब भीतर जमा हुआ मैल निकल जाए । हमारे शरीर को चला रहा
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