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अपना दर्पणः अपना बिम्ब पृष्ठरज्जु हमारे शरीर का मुख्य अवयव है । उसको लचीला रखना आवश्यक है । चेतना के सभी केन्द्रों का संबध पृष्ठरज्जु से है । शरीर के मुख्य नाड़ी-संस्थान का यही केन्द्र है । यही हमारे रूपान्तरण का माध्यम बनता है । हमारी दायीं-बायीं प्राणशक्ति का इससे संबंध है । यदि इसे पकड़ लिया जाता है तो सारा मार्ग स्पष्ट हो जाता है । ___ प्रेक्षाध्यान की प्रक्रिया का एक प्रयोग है-अन्तर्यात्रा । अन्तर्यात्रा का प्रयोग रीढ की हड्डी को साधने का प्रयोग है । हठयोग में माना जाता है कि कुंडलिनी का यही रास्ता है। इसी रास्ते से कुंडलिनी नीचे से ऊपर जाती है। तैजसशक्ति, प्राणशक्ति भी इसी रास्ते से ऊपर जाती है । चैतन्य केन्द्रों के सक्रिय होने पर साधना का विकास होता है, व्यक्ति का व्यक्तित्व बदलता है, अन्तर्दृष्टि जागती है, उसका रास्ता भी यही है । सुषुम्ना का मार्ग भी यही है। अतः कई दृष्टियों से मस्तिष्क की अपेक्षा रीढ़ की हड्डी का महत्त्व अधिक
है।
जरूरी है आसन
आसन करना अत्यंत जरूरी है । यदि हम शरीर के पूरे अवयवों का आसन न भी कर सकें तो शरीर के महत्त्वपूर्ण अंगों के लिए आसन अवश्य करें । शरीर के पांच महत्त्वपूर्ण अंग हैं
१. मस्तिष्क २. पृष्ठरज्जु ३. हृदय और फेफड़ा
४. पेट
५. पैर।
हम विश्राम की बात न सोचें। आज श्रम न करना बड़प्पन का मानदंड बन गया है । जीवन के लिए श्रम जरूरी है । आराम का सिद्धान्त मानसिक मूल्य मात्र है । जिन व्यक्तियों को शारीरिक श्रम कम करना पड़ता है, वे
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