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कायोत्सर्ग
पता चल जाए - शकुन ठीक नहीं हो रहा है, जैसा चाहिए वैसा वातावरण नहीं मिल रहा है, मन में जो मंगल भावना होनी चाहिए, वह नहीं जाग रही है, इस स्थिति में मंगल का प्रयोग करना चाहिए। जहां भी कोई स्खलन या अमंगल दीख रहा है वहां पंच- मंगल अथवा दो श्लोकों का चिन्तन करें
सव्वेसु खलियादिसु, झाएज्जा पंचमंगलं ।
दो सिलोगे व चिंतेज्जा, एगग्गो वापि तक्खणं ।।
श्वास और कायोत्सर्ग
पंच-मंगल का ध्यान करें अथवा दो श्लोकों का चिन्तन करें, इसका तात्पर्य है, आठ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करें । जहां कोई विघ्न-बाधा की संभावना हो वहां आठ श्वासोच्छ्वास के कायोत्सर्ग का विधान है। एक श्लोक के चार चरण और एक श्वास में एक चरण का ध्यान । दो श्लोक के ध्यान का अर्थ है - आठ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग । कायोत्सर्ग का मान श्वास के साथ रहा है । कुछ लोग कहते हैं-जैन दर्शन में श्वासोच्छ्वास की बात कहां है ? कायोत्सर्ग का श्वास के साथ जो मान रहा है, उसका बहुत बड़ा विधान है ।
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आठ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करने के बाद भी ऐसा लगे - शकुन अनुकूल नहीं हो रहा है, यात्रा या कार्यारम्भ के लिए वातावरण अनुकूल नहीं हो रहा है तो सोलह श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करें। उसके बाद भी अनुकूल स्थितियां न बनें तो तीसरी बार बत्तीस श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करें । इतना करने पर भी अनुकूल वातावरण न बने तो प्रस्तावित कार्य को स्थगित कर दें ।
मंगल : अमंगल
ये सारे विधान मंगल के लिए हैं । प्रत्येक कार्य के प्रारंभ में मंगल की अनुचिन्तना होनी चाहिए । ग्रंथ के प्रारंभ में नमस्कार करने की जो प्रक्रिया चली, उसका मंगल के लिए, ग्रंथ की निर्विघ्न संपन्नता के लिए सूत्रपात हुआ
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