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अपना दर्शन अपने द्वारा कैसे देखें?
मन की अवस्थाओं को देखना भी सहज नहीं है । हमारे विचारों के एक सैकण्ड में तैंतीस प्रकंपन हो जाते हैं । इन सारी अवस्थाओं को कौन देख सकता है? जो तटस्थ होकर बैठ जाए, वह इन्हें देख सकता है । जो इनके साथ बह जाएगा, वह इन्हें देख नहीं पाएगा । व्यक्ति इन्हें शान्तभाव से देखता चला जाए, इसी का नाम है आत्म-दर्शन। अतटस्थ व्यक्ति कभी देख नहीं सकता । वह घटना के साथ बह जाता है, देख नहीं पाता । देख वही सकता है, जो तटस्थ होता है । पारदर्शन की स्थिति
जिस व्यक्ति ने शरीर और मन में घटित होने वाली अवस्थाओं को देखने का अभ्यास किया है, वह अपने वर्तमान भव की तरह अतीत और अनागत को भी देखने लग जाता है । यह है जातिस्मरण का प्रयोग । व्यक्ति पहले स्थूल शरीर की अवस्थाओं कोदेखेगा, फिर तैजस शरीर की अवस्थाओं को देखेगा, कर्म शरीर में होने वाले प्रकम्पनों को देखेगा । फिर अतीत जन्म को देखने का अभ्यास हो जाएगा । व्यक्ति स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ता चला जाएगा, आगामी जन्म को देख पाने की स्थिति बनने लग जाएगी । यह पारदर्शन की बात आत्मदर्शन के द्वारा ही संभव है । हम केवल दूसरों को ही देखेंगे तो समस्याओं से मुक्ति नहीं मिलेगी । दूसरों को देखना हमारी जन्मना प्रकृति बनी हुई है पर इसके साथ-साथ अपने आपको देखने का भी अभ्यास करना है। इससे एक संतुलन बनेगा । जिस दिन यह संतुलन बन जाएगा, हमारे जीवन का सर्वांगीण विकास होगा, जीवन को एकांगिता से हटाकर परिपूर्णता की ओर ले जाने में सहायक होगा । यही प्रयोजन है अपने द्वारा अपने दर्शन का ।
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