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कायोत्सर्ग
एक व्यक्ति जैन धर्म में आस्था रखता है, निग्रंथ प्रवचन को सत्य मानता है और कायोत्सर्ग को नहीं जानता तो एक प्रश्न उभरता है-वह कैसा जैन जो कायोत्सर्ग को नहीं जानता । यदि एक साधक कायोत्सर्ग को न जाने तो सचमुच आश्चर्य की बात है । जैन साधना पद्धति का पहला बिन्दु है कायोत्सर्ग
और अन्तिम बिन्दु है कायोत्सर्ग । इसके अतिरिक्त कुछ है ही नहीं । इसके बारे में जानकारी न होना एक समस्या है । एक मुनि की शायद कोई भी प्रवृत्ति ऐसी नहीं है, जिसके पहले या पीछे कायोत्सर्ग का विधान न हो । कायोत्सर्ग की मूल्यवत्ता का यह एक स्वयंभू साक्ष्य है। मंगल के लिए
एक दृष्टिकोण रहा, जो व्यक्ति जीवन जीना चाहता है, उसे सबसे पहले एक करणीय कार्य की ओर ध्यान देना होता है और वह करणीय कार्य है मंगल । जीवन निर्विघ्न चले, वह सदा मंगलमय बना रहे, उसमें कोई बाधा न आए, अमंगल न हो । मंगल के लिए, अमंगल निवारण और विघ्न विनयन का जो सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयोग है, वह है कायोत्सर्ग। जो कायोत्सर्ग को जानता है, उसके जीवन का प्रत्येक दिन मंगलमय है।
जीवनं मंगलं भूयात्, प्रत्येकं मंगलं दिनम् ।
कायोत्सर्ग यतो वेम, सर्वदा मंगलं ततः।। विधान मंगल का
भाष्य साहित्य में एक बहुत सुन्दर प्रसंग है । विहार करना है, कोई नया काम शुरू करना है तो सबसे पहले मंगल का चिन्तन करो। यदि यह
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