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अपना दर्शन अपने द्वारा
'आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो' इस सूत्रोच्चारण के साथ ध्यान का प्रयोग प्रारम्भ हुआ और ध्यान सम्पन्न हो गया । एक साधक ने पूछा-क्या आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने की बात व्यावहारिक है? क्या यह संभव है? दो समस्याएं
ज्ञानं ममेन्द्रियाधीनं , जीवनं सामुदायिकम् । तत्रात्मनात्मनो दर्शः, कथं स्यात् सार्थकं प्रभो! ।।
साधक ने कहा-मेरा ज्ञान इन्द्रियों के अधीन है । मैं जो कुछ भी जानता हूं, वह पांच इन्द्रियों और मन के द्वारा जानता हूं । यदि उन्हें छोड़ दूं तो ज्ञान की सारी सामग्री कहां से आएगी ? कच्चा माल कहां से आएगा? जगत् के साथ हमारे संपर्क का एक मात्र साधन है इन्द्रियां। दुनियां में पांच विषय हैं और पांच इन्द्रियां हैं । इन्द्रियों के विषय का नाम है अर्थ । अर्थ पांच हैंशब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श । इनको जानने के लिए पांच इन्द्रियां हैं-श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय । ये अपने अपने निश्चित अर्थ को जानने एवं पहचानने वाली हैं । इस स्थिति में आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें, यह बात कैसे संभव हो सकती है ?
दूसरी समस्या यह है-हमारा जीवन समूह का जीवन है। यदि आदमी अपने आपको देखने लग जाए तो वह स्वार्थी बन जाएगा । सामूहिक जीवन में दूसरे को भी देखना होता है, दूसरे व्यक्ति की परेशानियों और कठिनाइयों को समझना होता है । व्यक्ति समाज में जीए और अपने आपको देखने वाला निरा स्वार्थी बन जाए तो समुदाय ठीक तरह से नहीं चल पाएगा । कहना
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