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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
होता है और प्राणवायु को पहुंचाता है नाक । हम श्वास लेते हैं और वही प्राणवायु का साधन बनता है। प्राण वायु को उपयोग में लेने का काम है फेफड़ों का ।
हमारे भीतर विष जाते हैं । हृदय और फेफड़े ठीक काम करते हैं तब ये विष बाहर निकल जाते हैं । बद्ध-पद्मासन फेफड़ों की स्वस्थता का प्रमुख हेतु बनता है । ध्यान और आसन
प्रेक्षा-ध्यान की पद्धति सर्वांगीण पद्धति है । शारीरिक, मानसिक और भावात्मक-सभी विकास परस्पर जुड़े हुए हैं । ध्यान का पाचन-तंत्र पर प्रभाव होता है, अग्नि मंद होती है । आसन के प्रयोग द्वारा उस समस्या का निराकरण किया जा सकता है ।
पाचन, रक्त-संचार आदि व्यस्थित होते हैं तभी ध्यान में मन लग सकता है । आसन के द्वारा उन्हें व्यवस्थित रखा जा सकता है ।
आसन के द्वारा विभिन्न चैतन्य केन्द्र जागृत होते हैं तथा ग्रंथितंत्र प्रभावित होता है । वह प्रभाव वृत्तियों के परिवर्तन में भी सहयोगी बनता है । उदाहरणस्वरूप क्रोध की वृत्ति को अनुशासित करने के लिए शशांक आसन आवश्यक है । सर्वांगासन से अनेक वृत्तियां अनुशासित होती हैं । जो ध्यानासन (सिासन, पद्मासन, वज्रासन, सुखासन आदि) हैं, वे भी ध्यान के लिए उपयोगी
आसन और व्यायाम
आसन शरीर के सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया है, साथ-साथ चैतन्य केन्द्रों के जागरण की भी प्रक्रिया है । व्याम मुख्यतः शरीर के विकास की प्रक्रिया है। आसन शक्ति-जागरण के सूक्ष्म अभ्यास हैं। व्यायाम शक्ति-जागरण का स्थूल अभ्यास है। आसन के साथ श्वास की क्रिया या प्राणायाम का योग रहता है किंतु व्यायाम में इन पर ध्यान नहीं दिया जाता ।
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