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आसन
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व्यक्ति दूसरा विकल्प अवश्य सोचें । यह विकल्प हो सकता है - आसन का । जो लोग श्रम अधिक करते हैं, उनके लिए आसन जरूरी न भी हों पर श्रम न करने वालों के लिए तो वे अनिवार्य हैं।
हम आसन के द्वारा शरीर को उचित श्रम देते हैं और उसके द्वारा हमारे भीतर नई शक्ति का संचार होता है । आज का व्यक्ति अत्यंत व्यस्त जीवन जी रहा है । उसके पास समय कम है । इस स्थिति में भी उसे कुछ I न कुछ आसन करने ही चाहिए । अन्यान्य आसन वह कर सके या नहीं, अधिक समय लगा सके या नहीं, प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 'बद्ध पद्मासन' का अभ्यास कर ही लेना चाहिए। यह आसन बहुत महत्त्वपूर्ण है ।
दो महत्त्वपूर्ण आसन
एक प्रश्न होता है, प्राचीन काल में चौरासी हजार आसन प्रचलित थे । एक व्यक्ति इतने आसन कैसे करे? वह एक एक आसन के लिए एक-एक मिनिट भी लगाए तो उसे चौरासी हजार मिनिट लगाने होते हैं । सारा दिन उसे आसनों में ही बिताना पड़ेगा । और और काम वह फिर कैसे करेगा ? कहा गया- चौरासी हजार आसन न सही, चौरासी आसन करे। चौरासी आसन भी प्रत्येक व्यक्ति के लिए कैसे संभव हैं? कहा गया- चौरासी हजार या चौरासी या दस-बीस इन संख्याओं को छोड़ दें, केवल दो आसन प्रत्येक व्यक्ति करे । एक है - बद्ध पद्मासन और दूसरा है - कायोत्सर्ग या शवासन ।
बद्ध-पद्मासन बहुत उपयोगी आसन है । यह रीढ़ की हड्डी के लिए, पेट, फुफ्फुस, हृदय तथा घुटनों के लिए बहुत उपयोगी है । जब फुफ्फुस ठीक काम करता है तब रक्त संचार ठीक होने लग जाता है । जब रक्त दूषित होता है तब शरीर में विकृति आती है, विचार विकृत बनते हैं । क्योंकि वह दूषित रक्त नाड़ियों में जाता है और सारे अवयव शिथिल हो जाते हैं, खराब हो जाते हैं । रक्त को साफ करना हृदय का काम है । प्राणवायु से रक्त शुद्ध
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