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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
नियम आसन का
आसन का नियम सबके लिए एक नहीं है । वज्रासन भोजन के तत्काल बाद किया जा सकता है किन्तु सर्वांगासन तत्काल नहीं किया जा सकता । साधारणतया आसन करने का समय प्रातःकाल है । भोजन के तीन-चार घंटे के बाद भी आसन किए जा सकते हैं । ध्यानासन भोजन के एक घंटे बाद कभी भी किए जा सकते हैं ।
आसन कहां करना चाहिए, इस विषय में प्राचीन निर्देश प्राप्त हैं। शुद्ध, स्वच्छ स्थान और वातावरण में आसन करणीय माने जाते हैं। प्रदूषित वातावरण में आसन वर्जनीय हैं । अधिक सीलन भरा स्थान या गंदगी भरा स्थान आसन के लिए उपयुक्त नहीं है ।
आसन करते समय देश, काल, वेशभूषा और पद्धति पर विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए । आसन काल में ऊनी कंबल का बिछौना उपयोगी माना गया है। ऊन नीचे जाने वाली ऊर्जा को रोक लेती है । बिछौना गद्देदार या अधिक कोमल नहीं होना चाहिए । कपड़े भी ढीले होने जरूरी हैं । कपड़े अधिक भी नहीं होने चाहिए ।
आसन : प्रत्यासन
___ आसन की पद्धति का ज्ञान भी जरूरी है क्योंकि आसन के साथ प्रत्यासन (विपरीत आसन) भी आवश्यक है । यदि आसन की विधि में त्रुटि हो जाती है तो उसका दुष्परिणाम अवश्य होता है । इसलिए पूरा रहस्य समझे बिना, पद्धति का पूरा ज्ञान किए बिना आसन करना खतरे से खाली नहीं है । किस स्थिति में कौन-सा आसन करना चाहिए और किस क्रम से करना चाहिए
और किस आसन का कौन सा प्रति-पक्षी आसन करना चाहिए, यह सारा जान लेने के बाद ही आसन करना उचित है । आसन का चुनाव किसी अनुभवी आसन-विशेषज्ञ की देख-रेख में करना चाहिए । शक्ति का तारतम्य,
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