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अपना दर्पणः अपना बिम्ब २. इष्ट की स्मृति । ३. सहज आनंद की जागृति का सूत्र । ४. मानसिक तनाव को दूर करने की अर्हता । ५. मनोकायिक रोगों से सुरक्षा की क्षमता । ६. विकल्प-मुक्ति का प्रशस्त पथ । ७. दाएं-बाएं पार्श्व में विद्यमान चैतन्यकेन्द्रों को जागृत करने की
क्षमता । अहं का स्वरूप
'अ' कुंडलिनी (तैजस शक्ति) का स्वरूप है । 'र' अग्निबीज है । इससे बुरे संस्कार नष्ट होते हैं । 'ह' आकाशबीज है । इससे चिदाकाश का अनुभव बढ़ता है। 'म' एक झंकार है । इससे ज्ञानतन्तु सक्रिय बनते हैं ।
अहँ के सभी वर्ण बहुत शक्तिशाली हैं इसीलिए यह एक शक्तिसंपन्न मंत्र है । आनन्दकेन्द्र में सूर्य जैसे तजस्वी अहं का ध्यान करें । वहां निरन्तर उसका अनुभव करें । जैसे-जैसे निरन्तरता बढ़ेगी, अपने में अहँ की अनुभूति विकसित होगी । पूरा व्यक्तित्व चैतन्यमय, आनन्दमय और शक्तिमय बन जाएगा। साधना का रहस्य
अहँ के कवच का निर्माण करें । तैजसकेन्द्र में सुनहरे रंग के कमल के मध्य अहं का ध्यान करें । फिर अनुभव करें-उसकी रश्मियां शरीर के चारों
ओर फैल रही हैं । पूरे शरीर के चारों ओर एक कवच बन रहा है । नौ बार उस कवच का अनुभव करें । भावना करें-कोई भी अनिष्ट शक्ति उसके भीतर प्रवेश नहीं कर सकेगी । यह आध्यात्मिक कवच बाहरी दुष्प्रभावों से बचाने में बहुत सक्षम है । साधना का रहस्य है-अहँ के प्रति प्रणिति ।
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