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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
है, साधना सही दिशा में आगे बढ़ सकती है। उपसंपदा की स्वीकृति
इन चार सूत्रों की स्वीकृति प्रेक्षाध्यान-साधना की दिशा में पहला प्रस्थान है । ध्यान-साधना की दिशा में दूसरा प्रस्थान है उपसंपदा को स्वीकार करना। उपसंपदा के पांच संकल्प-सूत्र हैं१. भावक्रिया २. प्रतिक्रिया - विरति ३. मैत्री ४. मित-आहार ५. मित-भाषण या मौन ध्यान का संकल्प
ध्यान-दीक्षा और उपसंपदा की स्वीकृति साधना की पूर्वभूमिका है। इसे स्वीकृत कर व्यक्ति ध्यान के लिए प्रस्तुत होता है, ध्यान-मुद्रा में अवस्थित होता है । वह अहँ की मंगलध्वनि के द्वारा भावना-कवच का निर्माण करता है । उसके पश्चात् ध्येय सूत्र का संगान करता है-सपिक्खए अप्पगमप्पएणं - आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें । व्यक्ति निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप ध्यान के संकल्प का उच्चारण करता है-'मैं चित्तशुद्धि के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कर रहा हूं।' इस संकल्प की स्वीकृति के साथ व्यक्ति ध्यान के प्रयोग-क्रम में अपने आपको नियोजित कर देता है। ध्यान के प्रायोगिक उपक्रम के अनेक चरण हैंकायोत्सर्ग
शरीरप्रेक्षा अंतर्यात्रा
चैतन्य केन्द्रप्रेक्षा दीर्घश्वासप्रेक्षा
लेश्या ध्यान समवृत्ति-श्वासप्रेक्षा
अनुप्रेक्षा
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