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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
इसीलिए प्रतिक्रिया को अनेक भागो में बांट दिया गया । प्रश्न आया-प्रतिक्रिया का समय समान होता है या असमान ? कहा गया-प्रतिक्रिया सरल है तो समय कम लगता है । प्रतिक्रिया जटिल है तो समय ज्यादा लगता है । एक जुलूस जा रहा है । उसे बता दिया जाए-लाल झण्डी दिखते ही रुक जाना है । जैसे ही लाल झण्डी दिखेगी, जुलूस रुक जाएगा । साथ में इतना और जोड़ दें-नीली और हरी झंडी दिख जाए तो नहीं रुकना है । प्रतिक्रिया के काल में अंतर आ जाएगा । सरल प्रतिक्रिया है-सामने वाला व्यक्ति कड़वी बात कहे तो तत्काल कड़वी बात कह देना । इसमें सोचना नहीं पड़ता । 'जैसे को तैसा'-प्रतिक्रिया का यह सिद्धान्त गहरा जमा हुआ है इसलिए व्यक्ति यह सोचता ही नहीं है कि मुझे यह कहना चाहिए अथवा नहीं । हमारी यह धारणा बन गई है-यदि कोई मूर्ख कहे तो तत्काल उसे महामूर्ख कह दो । इसमें सोचने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती । व्यक्ति यह सोचे-अमुक व्यक्ति ने मुझे यह कहा तो मुझे क्या कहना चाहिए? इस स्थिति में प्रतिक्रिया का काल लंबा हो जाएगा। जैसे ही प्रतिक्रिया का काल लंबा हुआ, महामूर्ख कहने की क्षमता नहीं होगी। प्रतिक्रिया-विरति का सूत्र
हम एक संकल्प करवाते हैं-जब जब क्रोध आए तब तब दस मिनट मौन रहें, बोलें नहीं । एक व्यक्ति कह सकता है-दस मिनट बोलना नहीं है तो बाद में बोलूंगा ही क्यों ? दस मिनट बाद बोलने की जरूरत ही नहीं है। बोलूंगा तो पहले ही बोलूंगा, कोई एक गाली देगा तो मैं दो गाली सुनाऊंगा। कोई मूर्ख कहेगा तो मैं महामूर्ख कह दूंगा । दस मिनट बाद बोलने से सारा मजा ही किरकिरा हो जाएगा । वस्तुतः यह प्रतिक्रिया-विरति या मैत्री का सूत्र है-प्रतिक्रिया के समय को लंबाना । प्रतिक्रिया से विरक्त होने का सूत्र है-एक साथ कषाय को न मिटा सको तो कम से कम तत्काल प्रतिक्रिया मत करो। तत्काल प्रतिक्रिया नहीं करते हैं तो बहुत सारी समस्याएं स्वतः समाहित हो जाती हैं। जितना झगड़ा, कलह, गाली-गलौज और संघर्ष होता है, वह तत्काल
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