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अर्हम्
प्रेक्षा-ध्यान के अभ्यास - काल में सबसे पहले अर्हम् की मंगल भावना की जाती है । यह एक शक्तिशाली मंत्र है । यह हमारी प्राणशक्ति को शक्तिशाली बनाने वाला और अर्हता का बोध कराने वाला है। शक्ति-संवर्धक मंत्र
अर्हम् विद्यमान शक्तियों को बढ़ाने का मत्र है । हम इस मंत्र के माध्यम से प्राणशक्ति का अनुभव करते हैं-हम कमजोर नहीं हैं, दीन-हीन नहीं हैं । हम शक्ति-संपन्न हैं और अपनी शक्ति का उपयोग प्रत्येक क्षेत्र में कर सकते
प्रेक्षा-ध्यान का एक अर्थ होता है-निश्चय पर पहुंच जाना। 'अर्हम्' हमें निश्चय पर पहुंचाता है, निश्चय पर पहुंचने के लिए सहयोग करता है । ध्यान का प्रारंभ करने से पूर्व 'अर्हम्' की ध्वनि की जाती है । इसका भी कारण है। आदमी बाहरी शक्ति से प्रभावित होता है । हमारी प्राणशक्ति को प्रभावित करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय है-ध्वनि तरंग । भिन्न-भिन्न ध्वनियों की भिन्न-भिन्न तरंगें होती हैं । उनका प्रभाव भी एक जैसा नहीं होता । ध्वनिगत मीमांसा . हम जितनी बार बोलते हैं उतनी ही बार बोलने के प्रकंपन भिन्न-भिन्न होते हैं । हम यह नहीं जानते कि अक्षर कहां से बोले जा रहे हैं । संस्कृत के भाषाविदों ने प्रत्येक उच्चारण का स्थान निर्धारित किया है । हमारे शरीर में उच्चारण के भिन्न-भिन्न स्थान हैं । हम 'अहम्' शब्द के उच्चारण की मीमांसा करें । 'अ' का उच्चारण कंठ से होगा, 'र' का उच्चारण मूर्धा से
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