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अर्हम्
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होगा, 'ह' का उच्चारण कंठ से होगा और 'म' का उच्चारण होठ से होगा । हम 'म' का उच्चारण करेंगे, होठ बंद हो जायेंगे ।
जैन रामायण में 'राम' शब्द की ध्वनिगत मीमांसा करते हुए कवि ने उसे आध्यात्मिक पुट इस प्रकार दिया है
'रा' उचरता मुख थकी पाप पलाई जाय ।
मत फिर आये तेहथी ममो किवाडी थाय ।
-'रा' का उच्चारण करते ही मुख खुलता है और उससे सारे पाप बाहर निकल जाते हैं । 'म' का उच्चारण करते ही होठ बंद हो जाते हैं, मुंह बंद हो जाता है, फिर पाप भीतर नहीं घुस सकता । 'म' कपाट का कार्य करता है ।
उच्चारण के स्थान
ध्वनिशास्त्र और उच्चारणशास्त्र के अनुसार हमारे शरीर में उच्चारण के आठ स्थान हैं
(१) उर
(२) कण्ठ
(३) शिर
(४) जिह्वामूल
(८) तालु
आज के विद्यार्थी भी इन पर ध्यान नहीं देते । स्थानों के आधार पर उच्चारण में भेद पड़ता है और उच्चारण की भिन्नता से अर्थ बदल जाता है।
शब्द-भेद की समस्या
(५) दंत
(६) नासिका
(७) ओष्ठ
संस्कृत में तीन प्रकार के सकार माने जाते हैं - तालव्य, मूर्धन्य और दन्त्य । इन तीनों के उच्चारण के तीन स्थान हैं - तालु, शिर और दांत । उच्चारण के भेद से ही शब्द-भेद समझा जा सकता है । संस्कृत में दो शब्द
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