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मिताहार के स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य के भी महत्त्वपूर्ण हेतु हैं । आहार और मौन
आहार के समय प्रयोग करना चाहिए मौन का । आहार के समय बोलना नहीं चाहिए, न हंसना चाहिए और न बातचीत करनी चाहिए। क्योंकि आहार करना भी एक खतरनाक काम है । शरीर की विचित्र व्यवस्था है-आहार नली और श्वास नली-दोनों का ढक्कन एक है। जब हम खाते हैं तब श्वास की नली पर एकदम ढक्कन आ जाता है और जब नहीं खाते हैं तब वह फिर खुल जाती है । यदि हम खाते हुए बातचीत करें, हंसें, उस समय वह नली खुली रह जाए और उसमें अन्न का एक कण भी चला जाए तो व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाए। ऐसी घटनाएं घटी हैं। भारत का एक सेनापति जापान गया हुआ था। भोजन करते हुए ऐसा ही कुछ हुआ कि श्वास नली पर ढक्कन नहीं आया और भोजन का कण श्वास नली में चला गया । सेनापति की तत्काल मृत्यु हो गई। ध्यान का एक प्रयोगः आहार ___ आहार के साथ भावक्रिया का प्रयोग भी चलना चाहिए । खाते समय केवल यही ध्यान रहे-मैं खा रहा हूं । आयुर्वेद में कहा गया-तन्मना भुंजीत-खाते समय आहार में ही मन रहे और किसी में मन न रहे। खाते समय घर भी याद आ जाए, दुकान भी याद आ जाए और झगड़ा भी याद आ जाए । खाते समय ध्यान इन सब बातों में उलझा रहे तो केवल खाने की बात संभव नहीं बनती ।।
खाना भी ध्यान का एक प्रयोग है । केवल खाना एक साधना है। इसका अर्थ है-कोरा खाना और कुछ नहीं करना । न सोचना है, न विचार और कल्पना करनी है, न योजना बनानी है । कुछ भी न करें। केवल खाएं, मन खाने में लगा रहे । यह साधना का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है।
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