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मितभाषण
हमारे सामने अनेक प्रवृत्तियां हैं - खाना, पीना, सोना, चलना आदि । प्रश्न होता है - हम इन सब प्रवृत्तियों में सबसे ज्यादा प्रवृत्ति कौन-सी करते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर होगा, बोलने का काम सबसे ज्यादा पड़ता है । खाते हैं तो बोलते हुए खाते हैं । चलते हैं तो बोलते हुए चलते हैं । नींद में भी बोलते रहते हैं ।
मूल्य है अल्पभाषिता का
बोलना शायद आदमी के जीवन का सबसे बड़ा काम है । वह जरूरत होती है तो भी बोलता है और जरूरत नहीं होती है तो भी बोलता है । कोई पूछता है तो भी बोलता है । बिना पूछे पंचायती करने वाले भी कम नहीं हैं, बिना मतलब खीर में मूसल डालने वाले भी कम नहीं हैं। व्यक्ति अनावश्यक भी बहुत बोलता है । जीवन दर्शन का मौलिक सूत्र है-वाणी का संयम - मितभाषण । कम बोलना सीखें । जरूरत के बिना बिल्कुल न बोलें। जरूरत होने पर भी बहुत संयत बोलें, सीमित बोलें। जिस व्यक्ति ने कम बोलना शुरू कर दिया, उसने जीवन की गहराई को समझना शुरू कर दिया । जो व्यक्ति जितना ज्यादा बोलता है, उसका जीवन उतना ही छिछला होता चला जाता है । जो ज्यादा बोलता है, उसका मूल्य कम होता है । जो कम बोलता है, उसका बहुत मूल्य होता है । हम कथा साहित्य को देखें । कालिदास बहुत कम बोलता था, पर जब तक कालिदास नहीं बोलता तब तक राजा भोज को संतोष नहीं होता । बीरबल कम बोलता था पर जब तक बीरबल नहीं बोलता तब तक बादशाह अकबर को संतोष नहीं होता । जो कम बोलता है, लोग उसे सुनना चाहते हैं । जो सारे दिन बोलता रहता है, उसे लोग सुनना
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