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पसंद नहीं करते ।
वाणी का संयम बहुत आवश्यक है । साधना काल में मौन करना बहुत अच्छा है । यदि इतना न कर सकें तो कम से कम अनावश्यक बातचीत न करें, घरेलू बातें न करें । व्यापार-व्यवसाय की बात न करें। इस स्थिति में ही साधना की गहराई में पहुंचा जा सकता है।
अपना दर्पणः अपना बिम्ब
वस्तुतः बड़ा कठिन होता हे मौन रहना । जब मन में तरंग उठती है, ज्वार आता है तब व्यक्ति से रहा नहीं जाता । पहला अभ्यास यह हो - अनावश्यक न बोलें, बिना मतलब न बोलें, अधिक न बोलें, दिन में कम से कम घंटा, दो घंटा मौन रखें । इतना अभ्यास होता है तो वह जीवन के लिए बहुत अच्छा होता है ।
बिना पूछे न बोले
हमारी प्रवृत्तियों में सबसे पहला स्थान बोलने का है । इस स्थिति में बिल्कुल मौन कर लें, यह हर किसी के लिए संभव नहीं है । प्रश्न होता है - हम वाणी की साधना कहां से शुरू करें ? वाणी की साधना का पहला सूत्र होना चाहिए - बिला पूछे न बोलें । यदि यह संकल्प जाग जाए तो मौन की दिशा में एक सशक्त कदम उठ जाए । हिन्दुस्तान के लोगों में एक बुरी आदत है बिना मांगें सलाह देने की । कोई व्यक्ति बीमार होता है तो ढेर सारी सलाह दे दी जाती है । यदि उन सलाहों को मान लें तो व्यक्ति स्वस्थ होने की बजाय अधिक बीमार हो जाए । स्वस्थ होने का तो प्रश्न ही नहीं आता । यदि कोई बड़ा आदमी बीमार हो जाए तो सलाह देने वालों का तांता लग जाता है । यदि बिना पूछे बोलना, सलाह देना रुक जाए तो मौन का पहला काम हो
जाए।
धीरे बोलने का अभ्यास करें
वाणी की साधना का दूसरा सूत्र है-धीरे बोलने का अभ्यास करें। धीरे बोलें, जोर से न बोलें । जोर से बोलने में बहुत शक्ति खर्च होती है । जो
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