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अपना दर्पणः अपना बिम्ब भोजन नहीं करना है । पेट साफ नहीं है तो गरिष्ठ भोजन नहीं खाना है । गरिष्ठ भोजन से कब्ज ज्यादा बढ़ जाएगी । कुछ लोग इस भाषा में भी सोचते हैं, ज्यादा खाएंगे तो कब्ज नहीं बढ़ेगी । यह एक प्रान्त धारणा है । कब्ज क्यों होती है ? जो खाया जाता है वह पूरा पच जाता है तो आते उसे निकाल देती हैं। यदि वह पचता नहीं है तो आंते उसे निकाल नहीं पातीं और कब्ज हो जाती है । कब्ज का कारण है-भोजन का सम्यग् पाचन न हो पाना । प्राकृतिक चिकित्सा की आधारशिला
हम मलों के निर्गमन पर ध्यान दें । बड़ी आंतें मल को निकालती हैं। पूरे शरीर में मल के निर्गमन की प्रक्रिया है । पसीने से मल निकलता है । गुर्दा मल निकालता है । मुंह और नाक से मल निकलता है । इनसे भी जो ज्यादा सूक्ष्म मल होता है वह धमनियों पर चिपक जाता है। मल के जमाव से एसिड जमा होता चला जाता है, केल्शियम जमा होता चला जाता है । यह केल्शियम ही जल्दी बुढ़ापा लाने का प्रमुख निमित्त है। चूना जमे नहीं, धमनियां कठोर नहीं बनें, रक्त-संचार के पथ में बाधा न आए । इन सबके लिए मलों के सम्यक् निस्सरण पर ध्यान देना जरूरी है।
स्वास्थ्य का महत्त्वपूर्ण सूत्र है-विजातीय का निर्गमन ठीक प्रकार से हो। प्राकृतिक चिकित्सा की आधार-शिला ही यही है । प्राकृतिक चिकित्सा को एक शब्द में, एक ही वाक्य में कहें तो इस प्रकार कहा जा सकता है-जितना मलों का जमाव उतना ही रोग, जितना मलों का सम्यग् निर्गमन उतना ही आरोग्य । आरोग्य का अर्थ है विजातीय तत्वों का जमाव न होना ।
उपवास चिकित्सा का मूल्य
जैन धर्म में उपवास को बहुत मूल्य दिया गया है । जैन लोग आध्यात्मिक दृष्टि से उपवास करते हैं । पश्चिम के लोगों ने उपवास का एक चिकित्सा पद्धति के रूप में विकास किया है । महात्मा गांधी ने इस पर बहुत प्रकाश
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