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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
का प्रमुख कारण है ज्यादा नमक खाना । ज्यादा नमक खाने का अर्थ है-गुर्दे
और किडनी को खराब करना । आजकल जो हार्ट के स्पेशलिस्ट हैं, वे यह सुझाते हैं-व्यक्ति को दिन में अधिकतम दो ग्राम नमक खाना चाहिए । यदि व्यक्ति एक कचौड़ी खाए तो कितना नमक उसके शरीर में चला जाएगा ? दो ग्राम का पता ही नहीं चलेगा । जो व्यक्ति कचौड़ी, पकौड़ी और भुजिया भी खा लेता है, साग भी खाता है, वह कितना नमक खाता होगा? लोग गेहूं की रोटी में भी नमक डाल देते हैं, बाजरे की रोटी में भी नमक डाल देते हैं। जब ये सब चटपटी चीजें खाते हैं तो कितना नमक शरीर में जाता है । जहां शरीर को आवश्यकता है एक ग्राम-दो ग्राम नमक की, वहां दिन में पता नहीं, दस-बीस ग्राम या इससे भी अधिक नमक शरीर में पहुंच जाता है । इतनी अधिक मात्रा में नमक खाने का अर्थ है स्वास्थ्य को बिगाड़ना ।
आहार : कुछ प्रयोग
एक प्रेक्षाध्यान साधक को खाने के बारे में ज्ञान करना जरूरी है। और क्या न खाए कितना खाए और कितना न खाए ? कब खाए और कब न खाए? कैसे खाए? इन सारी बातों को सीखना जरूरी है । साधक को चाहिए कि वह प्रयोग भी करे । उपवास एक प्रयोग है । आयबिल एक प्रयोग है। कम खाना एक प्रयोग है । कम द्रव्य खाना एक प्रयोग है। ये सारे प्रयोग साधना काल में करने चाहिए । प्रेक्षाध्यान शिविर में आयंबिल का प्रयोग कराया जाता है । उसका एक प्रकार यह होता है-२० ग्राम चावल, वह भी कच्चा चावल । और कोरा पानी । दूसरा प्रयोग होता है-अधपका चावल १०० ग्राम
और पानी । इस प्रयोग से अनेक लोगों ने भयंकर बीमारियों को मिटाया है। लुधियाना शिविर में डाक्टर गोयल ने दस दिन आयबिल का प्रयोग किया। वे शुगर की बीमारी से पीड़ित थे । डाक्टर कहते हैं-शुगर की बीमारी में चावल नहीं खाना चाहिए । उस डाक्टर ने १० दिन चावल खाकर आयंबिल का प्रयोग किया, शुगर की बीमारी मिट गई । आयंबिल का प्रयोग, कम खाने का प्रयोग, मात्रा कम लेने का प्रयोग या उपवास का प्रयोग ये सारे प्रयोग शरीर
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