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मिताहार
तालिकाओं के अनुसार एक आदमी के लिए पचास ग्राम चिकनाई पर्याप्त है। ढ़ाई सौ ग्राम एक व्यक्ति के लिए संतुलित भोजन की मात्रा है ।
आगम सूत्रों तथा व्याख्या ग्रंथों मे तपस्या तथा इन्द्रिय-संयम की दृष्टि से भोजन पर विचार किया गया । संतुलित भोजन की जो वर्तमान तालिका है, उसमें शरीर को केन्द्र मानकर विचार किया गया है । शरीर को कितनी जरुरत है? शरीर के जो अवयव हैं, वे कितना पचा सकते हैं? स्वास्थ्य कैसे सुरक्षित रह सकता है? संतुलित भोजन की तालिका इन सब के आधार पर बनी है। स्वास्थ्य और संयम
__ एक धार्मिक व्यक्ति के सामने केवल स्वास्थ्य का प्रश्न ही नहीं है, संयम का प्रश्न भी मुख्य है । उसके लिए स्वास्थ्य की बात सोचना जरूरी है तो साथ-साथ संयम की बात सोचना भी जरूरी है । स्वास्थ्य कैसे बना रहे ? शक्ति कैसे बनी रहे ? शक्ति कम से कम व्यय कैसे हो ? हम शक्ति को कैसे बचाएं ? स्वाध्याय, ध्यान, चिन्तन और मनन-इन कार्यों में अपनी शक्ति को कैसे लगाएं ? स्वास्थ्य और संयम-इन दोनों दृष्टियों से विचार करना जरूरी है । यदि केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से विचार करें और संयम की दृष्टि से विचार न करें तो बात पूरी नहीं होगी । केवल संयम की दृष्टि से विचार करें और स्वास्थ्य की दृष्टि से विचार न करें तो भी बात पूरी नहीं होगी । एक सामान्य आदमी के लिए केवल स्वास्थ्य की तालिका के अंग पर्याप्त हो सकते हैं पर एक साधक के लिए वे पर्याप्त नहीं हैं । उसके लिए स्वास्थ्य और संयम-दोनों का प्रश्न महत्वपूर्ण है । जीवन की पद्धति
प्रेक्षाध्यान केवल ध्यान की पद्धति नहीं है । वह एक समग्र जीवन पद्धति है । जीवन कैसे जीया जाए? जीवन के मूल तत्व क्या हों? और उन्हें कैसे जीना है? आदमी किस आधार पर जी रहा है? जीने का मूल आधार क्या है? पहला आधार है, श्वास । जब तक श्वास तब तक जीवन। श्वास नहीं तो जीवन भी नहीं । मूल तत्व है श्वास । दूसरा आधार है-आहार । आदमी
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