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मैत्री
प्रतिक्रिया से होता है। यदि प्रतिक्रिया के समय को लंबाया जाए तो सब कुछ शांत हो जाता है, संबंध मैत्रीपूर्ण बने रहते हैं । मैत्री का विकास
जीवन का मौलिक सूत्र है प्रसन्न रहना । कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो बहुत खुश रहते हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनके चेहरे पर कभी खुशी दिखाई ही नहीं देती । ऐसा क्यों होता है? प्रसन्नता जीवन का बहुत बड़ा सूत्र है । प्रसन्न रहने वाला व्यक्ति बहुत सारी कठिनाइयों का अनायास ही पार पा लेता है। पर प्रसन्नता कब संभव है ? मैत्री का विकास हो तो प्रसन्नता संभव है । मन में शत्रुता का भाव बना रहे तो व्यक्ति प्रसन्न नहीं हो सकता। व्यक्ति सोचता है- अमुक व्यक्ति ने मेरा यह कर दिया, अमुक व्यक्ति ने मेरा अपमान कर दिया । मुझे अमुक अमुक व्यक्ति से बदला लेना है । इस बदले की भावना से प्रेरित व्यक्ति के दुश्मनों की सूची लंबी बन जाती है। उसका सारा दिमाग उसी की क्रियान्विति में खप जाता है । इस स्थिति में प्रसन्नता आएगी कहां से? उसे आने का मौका ही नहीं मिलता । बहुत बड़ी साधना है मैत्री की साधना । यह प्रसन्न जीवन का रहस्य-सूत्र है । चिकित्सक बतलाते हैं-प्रसन्न रहो, सैकड़ों बीमारियां स्वतः टल जाएंगी । उदास रहना बीमारियों को निमंत्रण देना है । स्वस्थ और प्रसन्न जीवन जीने का सूत्र है-मैत्री का विकास ।
मैत्री : आत्मानुभूति
मैत्री का अर्थ है-सबमें आत्मानुभूति, सबमें आत्मौपम्य बुद्धि का विकास। आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो-यह ध्यान का सूत्र है । स्वयं की आत्मा को देखना है और दूसरे की आत्मा को भी देखना है । जो एक आत्मा को देखने लग जाता है वह सब आत्माओं को देखने लग जाता है। मैत्री का मतलब इतना ही नहीं है कि हम किसी से झगड़ा न करें । मैत्री का अर्थ है - आत्मानुभूति करना । अपने में जैसे आत्मानुभूति करते हैं वैसे ही दूसरे में
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