________________
लक्ष्य और मार्ग
साधना का संकल्प
प्रेक्षाध्यान साधना के लिए समुद्यत व्यक्ति सबसे पहले ध्यान की दीक्षा लेता है । ध्यान की दीक्षा का अर्थ है-साधना के लिए अपने आपको प्रस्तुत करना, साधना का संकल्प स्वीकार करना, साधना के मार्ग का चयन और उद्देश्य का निर्धारण करना। प्रेक्षाध्यान की साधना करने वाला साधक इन संकल्पों को स्वीकृत कर ध्यान-दीक्षा को अंगीकार करता है
अब्मुट्ठिओमि आराहणाए मैं प्रेक्षाध्यान की साधना के लिए उपस्थित हुआ हूं । मग्गं उवसंपज्जामि मैं अध्यात्म साधना का मार्ग स्वीकार करता हूं। सम्मत्तं उवसंपज्जामि मैं अन्तर्दर्शन की उपसंपदा स्वीकार करता हूं। संजमं उवसंपज्जामि
मैं आध्यात्मिक अनुभव की उपसंपदा स्वीकार करता हूं । लक्ष्य और मार्ग
पहली बात है-प्रेक्षाध्यान के लिए मानसिक तैयारी । उसके बिना तो कोई काम ही नहीं होता । दूसरी बात है अगर तैयारी है तो कोई मार्ग चाहिए । मार्ग नहीं है तो आदमी कहां जाए? मार्ग का होना जरूरी है । मार्ग है अध्यात्म साधना का मार्ग । अध्यात्म के पथ पर चलना, यह प्रेक्षाध्यान का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org