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अपना दर्पणः अपना बिम्ब रक्त का प्रवाह ज्यादा हो जाता है। भोजन को पचाना है तो आमाशय और पक्वाशय को पूरा रक्त चाहिए । उसी समय व्यक्ति सोचने लग जाए तो रक्त का प्रवाह मस्तिष्क की दिशा में चला जाएगा । आमाशय-पक्वाशय को पूरा रक्त नहीं मिलेगा तो पाचन ठीक नहीं होगा। पेट असहयोग करना शुरू कर देगा । यदि दस-बीस दिन यही क्रम चलता रहे तो पाचन - तंत्र बिगड़ जाएगा। यह परिणति है चेतना और क्रिया के विपरीत दिशागामी होने की । क्रिया और चेतना का योग होने से ही क्रिया सम्यग् होगी । यह भावक्रिया ही सफलता का रहस्य-सूत्र है।
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