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प्रतिक्रिया विरति
तीन शब्द हैं-क्रिया, अनुक्रिया और प्रतिक्रिया। जहां क्रिया होगी वहां प्रतिक्रिया होगी । क्रिया होती है, अनुक्रिया होती है और प्रतिक्रिया होती है । केवल मनुष्य में ही नहीं, प्रत्येक प्राणी में प्रतिक्रिया होती है । इच्छा-पूर्वक हो या प्रकृतिगत-प्रतिक्रिया प्रत्येक व्यक्ति में होती है। नई व्यवस्था और प्रतिक्रिया
तेरापंथ धर्मसंघ में एक व्यवस्था थी-मुनि या साध्वियां भिक्षा में जो आहार लातीं, उसमें प्राथमिकता साधुओं की रहती । साधु अपने लिए पहले आहार ले लेते, जो आहार शेष रहता, वह साध्वियों को दे दिया जाता । लम्बे समय तक यह व्यवस्था चलती रही । जयाचार्य ने उस व्यवस्था में परिवर्तन किया और संविभाग की बात को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा-भिक्षा में जो आहार आएगा, उसका संविभाग होगा, प्राथमिकता किसी की नहीं होगी । इस पांती (संविभाग) की व्यवस्था से दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं हुईं। कुछ साधुओं ने इस व्यवस्था को अच्छा माना । उन्होंने कहा-बहुत अच्छा हुआ, संविभाग की व्यवस्था हो गई। कुछ साधुओं ने सोचा-हमारा अधिकार छिन गया, यह अच्छा नहीं हुआ ।
संविभाग का संस्कार
व्यवस्था मान्य तो होती है पर वह अनुकूल लगे या न लगे, यह अलग बात है । साधुओं ने प्रतिक्रियाएं व्यक्त की यह नई बात क्यों? जो परंपरा प्रारंभ से चली आ रही है, उसमें परिवर्तन क्यों किया गया? जो प्रथा चल रही थी, उसमें क्या कमी थी? इन प्रतिक्रियाओं को देखते हुए जयाचार्य ने
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