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प्रतिक्रिया विरति क्या शब्द बोल रहा है, उसके द्वारा पूरे व्यक्तित्व को आंक लिया जाता है । व्यवहार से जुड़ी है प्रतिक्रिया
प्रतिक्रिया हमारे व्यवहार से अभिव्यक्त होती है । प्रतिक्रिया का सिद्धान्त हमारे पूरे व्यवहार को स्पष्ट करता है । प्रत्येक आदमी प्रत्येक स्थिति में अपनी प्रतिक्रिया को जताता है और उसके मनोभावों का पता चल जाता है। चाहे व्यक्ति बोलकर प्रतिक्रिया जताए, चाहे आकृति से जताए, हाव-भाव से जताए, प्रतिक्रिया प्रत्येक व्यक्ति जताता है। प्रतिक्रिया से कोई मुक्त नहीं है। __ प्रश्न होता है-प्रतिक्रिया आवश्यक और अनिवार्य है तो उससे विरति की बात क्यों ? इसी बिन्दु को हमें पकड़ना है । प्रतिक्रिया को रोका नहीं जा सकता। ठण्डी हवा लगी और प्रतिक्रिया हो जाएगी । धूप तेज हुई और प्रतिक्रिया हो जाएगी । जितने उद्दीपन हैं, वे सब प्रतिक्रिया के हेतु हैं । भीतर की अवस्था और बाहर का उद्दीपन-दोनों का जैसे ही योग मिला, प्रतिक्रिया
फूट पड़ेगी ।
आंतरिक कारण, उद्दीपन और निष्पत्ति
प्रतिक्रिया का आंतरिक कारण, प्रतिक्रिया का उद्दीपन और प्रतिक्रिया की निष्पत्ति-इन तीनों पर हमें विचार करना है। प्रतिक्रिया कहां से आ रही है? उसका भीतरी हेतु क्या है ? प्रतिक्रिया को उद्दीपन क्या मिल रहा है? हम इन पर ध्यान दें । प्रतिक्रिया की निष्पत्ति क्या होगी ? इस पर अधिक सावधान और सतर्क रहें । यदि हमारा चित्त कषाय से आकुल है, कषाय का तेज प्रवाह भीतर से आ रहा है तो प्रतिक्रिया अनंत बन जाएगी, वह आगे से आगे बढ़ती चली जाएगी । इसी तथ्य को लक्ष्य कर उपाध्याय विनयविजयजी ने लिखा-किसी व्यक्ति ने तुम्हारा अनिष्ट कर दिया, तुम्हारे मन पर प्रतिक्रिया
गई । तुम उस प्रतिक्रिया को लंबाओ मत । प्रतिक्रिया का जो अगला कदम है, उसे आगे मत बढ़ने दो । उसे आगे बढ़ाने से पहले थोड़ा चिन्तन करो। तुम्हारे मन में यह भाव आ सकता है-उस व्यक्ति ने मुझे आघात पहुंचाया है, मुझे आगे बढ़ने से रोका है । इसलिए ऐसी प्रतिक्रिया का होना स्वाभाविक
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