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भावक्रिया
का मतलब है भावक्रिया, समाधि और धर्म । आयुर्वेद का मत
विक्षेप को मिटाने के लिए एकाग्रता का अभ्यास करना जरूरी है। ध्यान का जो काल-प्रतिबद्ध प्रयोग है, वह विक्षेप को कम करने के लिए है । यह एक घंटा ध्यान का प्रयोग अभ्यास प्रक्रिया है। पहुंचना वहां है, जहां प्रत्येक क्रिया ध्यानमय बन जाए, निरन्तर जागरूकता की स्थिति बन जाए । यह सफलता का रहस्य-सूत्र है । आयुर्वेद के आचार्यों ने भी इस रहस्य-सूत्र का उद्घाटन किया है । चरक में लिखा है-तन्मना मुंजीत-भोजन करो तो तन्मय बन जाओ। प्रेक्षाध्यान शिविरों में एक प्रयोग कराया जाता है । भोजन के समय एक साधक निरन्तर यह निर्देश-वाक्य दोहराता है-जानते हुए खाएं । इस सूचना से साधक सावधान बने रहते हैं । साधक खाने की प्रत्येक क्रिया को जानते हुए करें-'अब कोर तोड़ा, कोर मुंह में जा रहा है, वह नीचे उतर गया है। जहां तक इच्छाचालित नाडीतंत्र का काम है वहां तक चेतन मन को साथ में जोड़े रखना । जब वह स्वतःचालित प्रवृत्ति में चला जाएगा तब शरीर अपना काम करेगा। चेतना और क्रिया एक दिशागामी हो
चरक का मत है-जहां तक इच्छाचालित तंत्र का काम है वहां तक चेतन मन साथ जुड़ा रहे तो पाचन ठीक होता है । हम एक ओर भोजन कर रहे हैं, दांत चबा भी रहे हैं, भोजन नीचे जा रहा है किन्तु चेतना दूसरे कार्य में लगी हुई है तो पाचन ठीक नहीं होगा । हाथ चल रहा है भोजन पर
और मन अटका हुआ है व्यापार में, कविता बनाने में या लेख लिखने में । दिमाग एक काम कर रहा है और पेट दूसरा काम कर रहा है तो दोनो में झगड़ा हो जाएगा । क्यों होगा झगड़ा? इसका कारण भी हम जान लें । पेट को भोजन पचाना है तो उसे भी पूरा रक्त चाहिए । दिमाग को सोचना है तो उसे भी पूरा रक्त चाहिए । इतना रक्त शरीर में नहीं है कि रक्त-संचार-तंत्र दोनों ओर पूरी सप्लाई कर सके । शरीर की व्यवस्था है-जिस समय जिस अवयव को रक्त की ज्यादा जरूरत होती है, उस समय उस अवयव की ओर
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