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जीवन से प्रभावित हो सकती हैं किन्तु अधिकांश घटनाओं के पीछे कोई हेतु होता है और वह है कर्म। कुछ रोग भी कर्मज होते हैं। आयुर्वेद में कर्मज रोग भी सम्मत है। आयुर्विज्ञान का दर्शन आत्मा से जुड़ा हुआ नहीं है इसलिए उसमें कर्म का सिद्धान्त भी मान्य नहीं है। आश्चर्य है कि शरीर की एक-एक कोशिका
और जैविक रसायन की खोज करने वाले शरीरशास्त्री आत्मा की खोज में आगे नहीं बढ़े। आत्मा की खोज का पहला रूप है कर्म की खोज । क्या कर्म को अस्वीकार करने का अर्थ चिकित्सा के एक आयाम को अस्वीकार करना नहीं है? वित्त
___ जीवन का सातवां घटक तत्त्व है चित्त । आत्मा एक सूर्य है। उसके प्रकाश की हजारों रश्मियां जीवन को आलोकित करती हैं। प्रकाश की एक रश्मि है चित्त । वह हमारे स्थूल शरीर को प्रकाशित और शरीर, मन एवं वाणी को संचालित कर रही है। प्रेक्षाध्यान का उद्देश्य है चित्त की विशुद्धि । चैतन्य के आवरण का विलय होता रहे और उसमें मूर्छा की मलिनता का प्रवेश न हो। चित्त की शुद्धि होने पर ही मनुष्य मादक वस्तु के सेवन, अपराध और अनावश्यक हिंसा से बच सकता है। ___ जीवन को समग्रता से समझने के लिए उक्त सातों बिन्दुओं पर ध्यान देना और उनके परिष्कार की चेष्टा करना मानवीय मूल्यों के विकास का प्रथम सोपान है।
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