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जीवन
श्वास
जीवन का दूसरा घटक तत्त्व है श्वास। श्वास को भी अभी बहुत कम समझा गया है। मस्तिष्क के दो पटल हैं दायां पटल और बायां पटल । दायां श्वास बाएं पटल को सक्रिय करता है और बायां श्वास दाएं पटल को सक्रिय करता है । नाड़ीतंत्र के संतुलन के प्रयोग भी प्रेक्षा-ध्यान में कराए जाते हैं। श्वास के अनेक प्रयोग भावात्मक परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण हेतु बनते हैं।
प्राण
जीवन का तीसरा घटक तत्त्व है प्राण। प्राण संचार की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। रक्त संचार की प्रक्रिया आयुर्विज्ञान में ज्ञात है। प्राण सूक्ष्म तत्त्व है। उसका यंत्र के द्वारा ग्रहण नहीं होता इसलिए वह अज्ञात है। स्वास्थ्य का अर्थ है-प्राण का संतुलन। प्राण का असंतुलन होता है, मनुष्य रुग्ण हो जाता है। बहुत लोग ऐसे हैं, जो अनेक मेडिकल इंस्टीटयूट्स में परीक्षण करवा चुके हैं। परीक्षा का निष्कर्ष है-तुम बीमार नहीं हो। वह व्यक्ति हमारे पास आकर कहता है-डाक्टर कहता है-तुम बीमार नहीं हो और मैं बहुत कष्ट भोग रहा हूं। हमारा उत्तर होता है तुम्हारे शरीर में वह बीमारी नहीं है, जिसे यंत्र पकड़ सके। तुम्हारा रोग प्राण असंतुलन का रोग है। वह प्राण संतुलन का प्रयोग करता है और स्वस्थ हो जाता है। प्राण योग का तत्त्व है। आयुर्विज्ञान में वह अभी सम्मत नहीं है। प्राण विज्ञान आयुर्विज्ञान के साथ जुड़े, इसकी अपेक्षा है। प्रेक्षाध्यान की पद्धति में प्राण संतुलन के लिए समवृत्ति श्वास प्रेक्षा का प्रयोग कराया जाता है।
मन
जीवन का चौथा घटक तत्त्व है मन । मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य से अधिक मूल्यवान् है। मन की अधिक चंचलता अनेक समस्याएं उत्पन्न करती हैं। मन की एकाग्रता अनेक समस्याओं का समाधान है। प्रेक्षाध्यान के अभ्यास में मन की एकाग्रता के अनेक प्रयोग कराए जाते हैं। स्मृति, कल्पना
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