________________
अपना दर्पणः अपना बिम्ब
जीवन का पहला घटक तत्त्व है शरीर । एक चिकित्सक के सामने भी सबसे पहले शरीर होता है। सारी बातें शरीर में ही होती हैं। बहुत रहस्यपूर्ण है हमारा शरीर। आज मेडिकल साइंस में काफी अन्वेषणाएं की गई हैं, बहुत कुछ खोजा गया है, किन्तु जो खोजा गया है वह एक बिन्दु जितना है। हमारा ज्ञात का जगत् बहुत छोटा सा है। अज्ञात एक महासागर है। मनुष्य अपने मस्तिष्क और इन्द्रियों से बहुत खोज करता है किन्तु सत्य इतना अनंत है कि उसके कुछेक पर्याय ही सामने आ पाते हैं। __एक चिकित्सक चिकित्सा की दृष्टि से शरीर को समझता है। वह नाड़ीतंत्र
और ग्रंथितंत्र-दोनों को समझने का प्रयत्न करता है किन्तु प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में शरीर को पढ़ना होता है तो पढ़ने का दृष्टिकोण बदल जाता है । हमारे शरीर में कुछ ऐसे केन्द्र हैं, जहां चेतना सघन रूप से केन्द्रित है। प्रेक्षा-ध्यान की भाषा में उन्हें चैतन्य केन्द्र कहा जाता है। उन पर ध्यान के प्रयोग कराए जाते हैं। यदि आध्यात्मिक शक्ति को जगाना है तो दर्शन केन्द्र पर ध्यान का प्रयोग करना होता है। संतुलित अनुशासित और आत्म नियंत्रित होना है तो शान्तिकेन्द्र पर ध्यान करना होता है। नशे की आदत को छोड़ना है तो कान पर ध्यान करना होता है। नशामुक्ति का केन्द्र है अप्रमाद केन्द्र। __ प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में शरीर को पढ़ा तो यह भी समझ में आया भावात्मक परिवर्तन के केन्द्र कहां कहां है? भावात्मक परिवर्तन के प्रयोग अध्यात्म के प्रयोग हैं। न हम डाक्टर हैं, न हमारे पास दवा है। केवल शरीर के रहस्यों को खोजकर कुछेक ध्यान के ऐसे प्रयोग कराते हैं, जिनसे एकाग्रता बढ़ती है, भावात्मक समस्याएं समाहित होती हैं। लेश्याध्यान (आभामंडलीय ध्यान) जैसे कुछ नये प्रयोग भी विकसित हुए हैं। महापुरुषों के चित्रों के पीछे एक आभामंडल दिखाया जाता है। वह आभामंडल प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के चारों ओर होता है। वह भाव परिवर्तन के साथ-साथ बदलता रहता है। निर्मल भाव, आभामंडल निर्मल । मलिन भाव, आभामंडल भी मलिन। ध्यान के द्वारा आभामण्डल को निर्मल और शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org