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लक्ष्य और मार्ग मार्ग है। तीसरी बात है-मार्ग सही होना चाहिए । यदि मार्ग है और सही नहीं है तो वह लक्ष्य तक नहीं पहुंचाएगा। सही मार्ग का अर्थ है-जहां पहुंचना है वहां तक पहुंचाने वाला मार्ग। लक्ष्य और मार्ग-दोनों के एक साथ होने का मतलब है सही मार्ग । जाना है बीकानेर और जाएंगे जोधपुर के रास्ते तो मार्ग सही नहीं होगा । जोधपुर का रास्ता भी मार्ग तो है पर जब बीकानेर जाना है तो वह सही मार्ग नहीं है । लक्ष्य और मार्ग-दोनों का योग होना चाहिए । लक्ष्य की दिशा में जाना, सही मार्ग है और लक्ष्य के विपरीत जाना, गलत मार्ग है । मार्ग का निर्णय होता है लक्ष्य के आधार पर । समस्या यह है-आदमी लक्ष्य नहीं बना पाता । ध्यान करने वाले व्यक्ति का लक्ष्य निश्चित होना चाहिए । यदि लक्ष्य का पता नहीं है तो व्यक्ति कहां पहुंचेगा? सही मार्ग है संयम
प्रेक्षाध्यान का लक्ष्य है-आध्यात्मिक चेतना का विकास, आन्तरिक चेतना का विकास । हम बाहर बहुत देखते हैं। भीतर की दृष्टि जागे और भीतर में देख सकें, यह अन्तर्दर्शन हमारा लक्ष्य है, आध्यात्मिकता हमारा लक्ष्य है । जब लक्ष्य आध्यात्मिक विकास का है तब बाजार में जाकर गप्पें हांकना सही मार्ग नहीं होगा । उसके लिए सही मार्ग है-शरीर का संयम करें, वाणी का संयम करें, आहार का संयम करें, मन का संयम करें ।
चौथी बात है- संयम । लक्ष्य भी ठीक है मार्ग भी ठीक है पर संयम नहीं है, अपने आप पर नियंत्रण नहीं है तो काम नहीं बनेगा । कार ठीक रास्ते पर जा रही है, जहां पहुंचना है, उसी रास्ते पर जा रही है किन्तु रास्ते में ब्रेक फेल हो गया तो क्या होगा? यह स्थिति कितनी खतरनाक हो जाती है । यदि अपना नियंत्रण नहीं है तो बहुत खतरनाक स्थिति पैदा हो जाती
साधना के लिए मानसिक तैयारी, मार्ग का चयन, लक्ष्य का निर्धारण और साधना की स्वीकृति-ये चार सूत्र प्रेक्षाध्यान-साधक के लिए प्रकाश-स्तंभ हैं। इन चार सूत्रों के आलोक में ही साधना के क्षेत्र में गति उपलब्ध हो सकती
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