________________ (7 ) चाहे वह राजा हो चाहे रंक, अपने लिये 'अस्मद्' के बहुवचन का प्रयोग कर सकता है, और दो का भी अपने लिए बहुवचन का प्रयोग शास्त्र-संमत है। जैसे-'वयमिह परितुष्टा वल्कलस्त्वं दुकूलः / ' (भर्तृहरि) / यह एक कवि का राजा के प्रति वचन है / संस्कृत में कुछ एक शब्दों के एकवचनान्त प्रयोग को अच्छा समझा जाता है, चाहे अर्थ बहुत्व विवक्षित हो। जैसे--'प्रज्ञा आत्मानं कृतिनं मन्यन्ते' (मर्ख अपने आपको विद्वान् समझते हैं)। यहां 'प्रज्ञा प्रात्मनः कृतिनो मन्यन्ते' लौकिक व्यवहार के प्रतिकूल है। 'मन्यन्ते सन्तमात्मानमसन्तमपि विश्रुतम्'-महाभारत प्रजागर पर्व (34 // 45 // ) / इसी प्रकार हम कहते हैं'एवं वदन्तस्ते स्वस्य जाडयमुदाहरन्ति' न कि ‘एवं वदन्तस्ते स्वेषां जाड्यम्..............। . कुछ एक शब्द ऐसे भी हैं, जिनका वचन व्यवहारानुसार निश्चित है / जैसे-दार पु० (पत्नी), अक्षत पुं० (पूजा के काम में आनेवाले बिना टूटे चावल), लाज पुं० (खील, लावा) इत्यादि शब्द सदा बहुक्चन में ही प्रयुक्त होते हैं / इनके अतिरिक्त कुछ स्त्रीलिंग शब्दों अप् (जल), सुमनस् (फूल), वर्षा (बरसात) का सदा बहुवचन में ही प्रयोग होता है। अप्सरस् स्त्री० (अप्सरा), सिकता स्त्री० (रेत) और समा स्त्री० (वर्ष) प्रायः बहुवचन में ही प्रयुक्त होते हैं, और कभी-कभी एकवचन में भी व्यवहृत होते हैं / 'जलोका' (जोंक) एक वचन और द्विवचन में भी प्रयुक्त होता है, पर 'जलौकस्' (जोंक) बहुवचन में ही ( ) / गृह केवल पुं० में, [] पांसु पु. धाना (स्त्री०) (भुने ___x यहां 'स्व' 'मात्मा' अर्थ में है। अतः षष्ठ्येकवचन में प्रयोग उपपन्न है / प्रात्मीय अर्थ में समानाधिकरणतया प्रयुक्त होने पर यथापेक्ष द्विवचन भौर बहुवचन में भी व्यवहार निर्दोष होगा-सा निन्दन्ती स्वानि भाग्यानि बाला' (शाकुन्तलम्) / ___ * सुमनस् (स्त्री०) मालती अर्थ में एक वचन में भी प्रयुक्त होता है (सुमना मालती जातिः-अमर) / पुष्प अर्थ में भी इसका कहीं-कहीं एक वचन और द्विवचन में प्रयोग मिलता है-'वेश्या श्मशानसुमना इव वर्जनीया' (मृच्छकटिक)। 'अघ्रासातां सुमनसो' (काशिका)। अमर तो पुष्प अर्थ में इसे नित्य बहुवचनान्त ही मानता है-आपः सुमनसो वर्षाः, स्त्रियः सुमनसः पुष्पम् / () स्त्रियां भूम्नि जलौकसः-प्रमर० / [] 'पांसवः कस्मात् / पंसनीया भवन्ति' यास्क की यह निरुक्ति इसमें ~~