Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर प्रकाश डाला गया है। जो बोली जाय वह भाषा है। १२८ दूसरे शब्दों में जो दूसरों के अवबोध–समझने में कारण हो वह भाषा है। १२९ मानव जाति के सांस्कृतिक विकास में भाषा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। भाषा विचारों के आदान-प्रदान का असाधारण माध्यम है। भाषा शब्दों से बनती है और शब्द वर्णात्मक हैं। इसलिए भाषा के मौलिक विचार के लिए वर्णविचार आवश्यक है, क्योंकि भाषा, वर्ण और शब्द से अभिन्न है।
_ भारतीय दार्शनिकों ने शब्द के सम्बन्ध में गंभीर चितन किया है—शब्द क्या है? उसका मूल उपादान क्या है? वह किस प्रकार उत्पन्न होता है ? अभिव्यक्त होता ? और किस प्रकार श्रोताओं के कर्ण-कुहरों में पहुँचता है ?
कणाद आदि कितने ही दार्शनिक शब्द को द्रव्य न मानकर आकाश का गुण मानते हैं। उनका मन्तव्य है कि शब्द पौद्गलिक नहीं है चूंकि उसके आधार में स्पर्श का अभाव है। शब्द आकाश का गुण है इसलिए शब्द का आधार भी आकाश ही माना जा सकता है। आकाश स्पर्श से रहित है इसलिए उसका गुण शब्द भी स्पर्शरहित स्कन्ध दोनों एक है और जो स्पर्शरहित है वह पुद्गल नहीं है। दूसरी बात पुद्गल रूपी होता है। रूपी होने से वह स्थूल है, स्थूल वस्तु न तो किसी सघन वस्तु में प्रविष्ट हो सकती हैं और न निकल ही सकती है। शब्द यदि पुद्गल होता तो वह स्थूल भी होता पर शब्द दीवाल को भेद कर बाहर निकलता है। इसलिए वह रूपी नहीं है और रूपी नहीं होने से वह पुद्गल भी नहीं है। तीसरा कारण यह है पौद्गलिक पदार्थ उत्पन्न होने के पूर्व भी दिखाई देता है और नष्ट होने के पश्चात् भी। उदाहरण के रूप में घड़ा बनने के पूर्व मिट्टी दिखाई देती है और घड़ा नष्ट होने पर उसके टुकड़े भी दिखाई देते हैं। इस प्रकार प्रत्येक पौद्गलिक पदार्थ के पूर्ववर्ती और उत्तरवर्ती रूप दृग्गोचर होते हैं। पर शब्द का न तो कोई पूर्वकालीन रूप दिखाई देता है और न उत्तरकालीन ही। ऐसी स्थिति में शब्द को पुद्गल नहीं मानना चाहिए। चौथी बात यह है कि पौद्गलिक पदार्थ दूसरे पौद्गलिक पदार्थों को प्रेरित करते हैं। यदि शब्द पुद्गल होता तो वह भी अन्य पुद्गलों को प्रेरित करता। पर वह अन्य पुद्गलों को प्रेरित नहीं करता है, इसलिए शब्द को पौद्गलिक नहीं मान सकतें। पांचवाँ कारण—शब्द आकाश का गुण है, आकाश स्वयं पुद्गल नहीं है, इसलिए उसका गुणशब्द पुद्गल नहीं हो सकता।
प्रस्तुत युक्तियों के सम्बन्ध में हम जैनदृष्टि से चिंतन करेंगे। मीमांसा दर्शन में शब्द के आधार को स्पर्शरहित माना है किन्तु वस्तुतः शब्द का आधार स्पर्शरहित नहीं किन्तु स्पर्शवान् है। शब्द का आधार भाषावर्गणा है और भाषावर्गणा में स्पर्श अवश्य होता है। अतः शब्द का आधार स्पर्श वाला होने से शब्द भी स्पर्श वाला है और स्पर्श वाला होने से पुद्गल है। यहाँ पर यह सहज जिज्ञासा हो सकती है कि शब्द में यदि स्पर्श होता तो हमें स्पर्श की प्रतीति होनी चाहिए, हम शब्द सुनते हैं किन्तु शब्द स्पर्श नहीं होता, ऐसी स्थिति में शब्द को स्पर्शवान् कैसे माना जाय? उत्तर में निवेदन है कि जिस वस्तु का हमें अनुभव हो उसका अभाव १२८. भाष्यते इति भाषा-प्रज्ञापना टीका २४६ १२९. भाषा अवबोधबीजभूता।-प्रज्ञापना टीका २५६
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