Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रज्ञापनापद]
[८७ .
[८४-२] इनमें से जो सम्मूछिम हैं, वे सभी नपुंसक होते हैं।
[३] तत्थ णं जे ते गब्भवक्कंतिया ते णं तिविहा पण्णत्ता। तं जहा—इत्थी १ पुरिसा २ नपुंसगा ३।
[८४-३] इनमें से जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए हैं १. स्त्री, २. पुरुष और ३. नपुंसक।
[४] एएसि णं एवमाइयाणं पजत्ताऽपजत्ताणं उरपरिसप्पाणं दस जाइकुलकोडीजोणिप्पमुहसतसहस्सा हवंतीति मक्खातं। से तं उरपरिसप्पा।
[८४-४] इस प्रकार (अहि) इत्यादि इन पर्याप्तक और अपर्याप्तक उरःपरिसरों के दस लाख जाति-कुलकोटि-योनि-प्रमुख होते हैं, ऐसा कहा है।
यह उर:परिसॉं की प्ररूपणा हुई। ८५. [१] से किं तं भुयपरिसप्पा ?
भुयपरिसप्पा अणेगविहा पण्णत्ता। तं जहा—णउला गोहा सरडा सरंठा सारा खारा घरोइला विस्संभरा मूसा मंगूसा पयलाइया छीरविरालिया; जहा चउप्पाइया, जे यावऽण्णे तहप्पगारा।
[८५-१ प्र.] भुजपरिसर्प किस प्रकार के हैं ?
[८५-१ उ.] भुजपरिसर्प अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार–नकुल (नेवले), गोह, सरट (गिरगिट), शल्य, सरंठ (सरठ), सार, खार (खोर), गृहकोकिला (घरोली-छिपकली) विषम्भरा, (विसभरा),मूषक (चूहे), मंगुसा (गिलहरी), पयोलातिक, क्षीरविडालिका; जैसे चतुष्पद (चौपाये) स्थलचर (का कथन किया, वैसे ही इनका समझना चाहिए)। इसी प्रकार के अन्य जितने भी (भुजा से चलने वाले प्राणी हों, उन्हें भुजपरिसर्प समझना चाहिए)।
[२] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता। जहा—सम्मुच्छिमा य गब्भववंतिया य ।
[८५-२] वे (नकुल आदि पूर्वोक्त भुजपरिसर्प) संक्षेप में दो प्रकार के होते हैं। जैसे किसम्मूर्छिम और गर्भज।
[३] तत्थ णं जे ते सम्मुच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा। [८५-३] इनमें से जो सम्मूर्छिम हैं, वे सभी नपुंसक होते हैं।
[४] तत्थ णं जे ते गब्भवतंतिया ते णं तिविहा पण्णत्ता। तं जहा—इत्थी १ पुरिसा २ नपुंसगा ३।
[८५-४] इनमें से जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए हैं। (१) स्त्री, (२) पुरुष और (३) नपुसंक।
[५] एतेसि णं एवमाइयाणं पज्जत्ताऽपजत्ताणं भुयपरिसप्पाणं णव जाइकुलकोडिजोणीपमुहसतसहस्सा हवंतीति मक्खायं। से त्तं भुयपरिसप्पथलयरपचेदियतिरिक्खजोणिया। से त्तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया।